आधिकारिक क्षमता में मंत्री के दिए अपमानजनक बयान के लिये सरकार को ठहराया जा सकता है जिम्मेदार
नयी दिल्ली. नफरती भाषण के संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करने का उल्लेख करते हुए उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने मंगलवार को कहा कि अगर कोई मंत्री अपनी ‘‘आधिकारिक क्षमता’’ में अपमानजनक बयान देता है तो इस तरह के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की एक संविधान पीठ ने एक अलग फैसले में कहा कि एक मंत्री के बयान के लिये सरकार को ‘‘अप्रत्यक्ष रूप से’’ जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.
इस मुद्दे पर पीठ के साथी न्यायाधीशों से असहमति व्यक्त करते हुए एक निर्णय में न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि हाल के दिनों में अविवेकपूर्ण भाषण ंिचता का कारण है क्योंकि यह हानिकारक और अपमानजनक है.
उन्होंने कहा, ‘‘नफरती बयान समाज को असमान रूप में चिन्हित करके संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करते हैं. यह विविध पृष्ठभूमि के नागरिकों के भाईचारे के भी खिलाफ है. एक सामंजस्यपूर्ण समाज की आवश्यक स्थिति बहुलता और बहु-संस्कृतिवाद पर आधारित है जैसे कि इंडिया जो कि ‘भारत’ है. भाईचारा इस विचार पर आधारित है कि नागरिकों की एक दूसरे के प्रति पारस्परिक जिम्मेदारियां होती हैं.’’ न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि सार्वजनिक पदाधिकारियों और मशहूर हस्तियों सहित अन्य प्रभावशाली लोगों का कर्तव्य है कि वे अपने भाषण में अधिक जिम्मेदार और संयमित रहें.
उन्होंने कहा, ‘‘जनता की भावना और व्यवहार पर पड़ने वाले संभावित परिणामों के संबंध में उन्हें अपने शब्दों को समझने और मापने की आवश्यकता है और यह भी पता होना चाहिए कि वे साथी नागरिकों के लिये क्या उदाहरण पेश कर रहे हैं.’’ न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि यह पार्टी पर है कि वह अपने मंत्रियों के बयानों को नियंत्रित करे जो एक आचार संहिता बनाकर किया जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी नागरिक जो इस तरह के भाषणों या सार्वजनिक अधिकारी द्वारा अभद्र भाषा आदि से आहत महसूस करता है, दीवानी समाधान के लिए अदालत से संपर्क कर सकता है. यह संसद के लिए है कि वह अपने ज्ञान के आधार पर सार्वजनिक पदाधिकारियों को अनुच्छेदों 19(1)(ए) और 19(2) को ध्यान में रखते हुए साथी नागरिकों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने से रोकने के लिए एक कानून बनाए.’’ शीर्ष अदालत के न्यायाधीश ने कहा कि हमारे जैसे संसदीय लोकतंत्र वाले देश के लिए स्वस्थ लोकतंत्र सुनिश्चित करने के वास्ते भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक आवश्यक अधिकार है.
उच्चतम न्यायालय उस व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसकी पत्नी तथा बेटी से जुलाई 2016 में बुलंदशहर के समीप एक राजमार्ग पर कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया गया. वह इस मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने तथा उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री आजम खान पर उनके विवादित बयान के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध कर रहा है. आजम खान ने कहा था कि सामूहिक दुष्कर्म का यह मामला ‘‘राजनीतिक षडयंत्र’’ है. यह फैसला इस सवाल पर आया है कि क्या किसी जन प्रतिनिधि के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर पाबंदियां लगायी जा सकती हैं?