लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी नेताओं के खिलाफ राजद्रोह कानून का प्रयोग करना चाहती है सरकार: कांग्रेस
नयी दिल्ली. कांग्रेस ने विधि आयोग द्वारा राजद्रोह के अपराध संबंधी दंडात्मक प्रावधान का समर्थन किए जाने के बाद शुक्रवार को केंद्र सरकार पर इस कानून को पहले से अधिक खतरनाक बनाने के प्रयास करने का आरोप लगाया और कहा कि यह संदेश दिया गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी नेताओं के खिलाफ इस कानून का दुरुपयोग किया जाएगा.
पार्टी प्रवक्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने यह दावा भी किया कि सरकार इस कदम से अपनी औपनिवेशिक मानसिकता का परिचय दे रही है और यह दर्शा रही है कि मानो उसे राजद्रोह कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय के सख्त रुख के बारे में कुछ नहीं पता.
उल्लेखनीय है कि विधि आयोग ने राजद्रोह के अपराध संबंधी दंडात्मक प्रावधान का समर्थन करते हुए कहा है कि इसे पूरी तरह से निरस्त करने से देश की सुरक्षा और अखंडता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के चलते भारतीय दंड संहिता की राजद्रोह संबंधी धारा 124ए फिलहाल स्थगित है.
पिछले साल 11 मई को एक ऐतिहासिक आदेश में शीर्ष अदालत ने राजद्रोह संबंधी औपनिवेशिक युग के दंडात्मक कानून पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी जब तक कि “उचित” सरकारी मंच इसकी समीक्षा नहीं करता. इसने केंद्र और राज्यों को इस कानून के तहत कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं करने का निर्देश दिया था. शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी थी कि देशभर में राजद्रोह कानून के तहत जारी जांच, लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाही पर भी रोक रहेगी.
सिंघवी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘सरकार राजद्रोह के कानून को भयानक-खतरनाक बनाने में लगी है. ऐसा लगता है कि मानो सरकार उच्चतम न्यायालय की उस टिप्पणी से अनभिज्ञ हैं जिसमें उसने इस कानून पर अंकुश लगाने की बात की थी.’’ उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘सरकार औपनिवेशिक मानसिकता का परिचय दे रही है. आम चुनाव से पहले यह संदेश दिया गया है कि वपिक्ष के नेताओं के खिलाफ एकतरफा और पक्षपातपूर्ण ढंग से इस कानून का दुरुपयोग किया जाएगा.’
सिंघवी ने सवाल किया, ‘‘भाजपा की सरकारों में राजद्रोह के कानून का दुरुपयोग क्यों बढ़ा? क्या राष्ट्रीय चुनाव के मद्देनजर कदम उठाया जा रहा है? विपक्ष के नेताओं के खिलाफ ही इसका इस्तेमाल क्यों होता है? उन्होंने दावा किया, ‘‘मोदी सरकार के आने के बाद से 2020 तक राजद्रोह के मामलों में करीब 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. कोरोना काल में आॅक्सीजन व अन्य समस्याओं के विरोध के संबंध में 12 मामले दर्ज हुए . 21 मामले पत्रकारों के खिलाफ दर्ज हुए हैं . 27 मामले सीएए-एनआरसी के मुद्दे से जुड़े हैं.’’ सिंघवी ने आरोप लगाया कि सरकार सब कुछ नियंत्रित करने की भावना से काम कर रही है.
राजद्रोह के मामलों में सजा बढ़ाकर सात वर्ष की जाए : विधि आयोग की सिफारिश
भारतीय विधि आयोग ने राजद्रोह के मामलों में कारावास की सजा को कम से कम तीन वर्ष से बढ़ाकर सात वर्ष करने की सिफारिश की है. आयोग ने तर्क दिया है कि इससे अदालतों को किए गए कृत्य के स्तर और गंभीरता के अनुरूप सजा देने की अधिक गुंजाइश रहेगी.
‘राजद्रोह कानून के उपयोग’ पर अपनी रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि उसने अपनी पिछली रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह कानून) के लिए सजा को ‘‘बहुत अजीब’’ करार दिया था क्योंकि इसमें आजीवन कारावास या तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान है, लेकिन इसके बीच में कुछ भी नहीं है.
राजद्रोह कानून के तहत न्यूनतम सजा के अंतर्गत जुर्माने का प्रावधान है. आयोग ने कहा, ‘‘आईपीसी के अध्याय-6 में अपराधों के लिए दिए गए वाक्यों की तुलना से पता चलता है कि धारा 124ए के लिए निर्धारित दंड में स्पष्ट असमानता है.’’ आईपीसी का अध्याय-6 राज्य के खिलाफ किए गए अपराधों से निपटने से संबंधित है. रिपोर्ट में अध्याय-6 में राजद्रोह के अपराध के लिए सजा के प्रावधान में बदलाव की सिफारिश की गई है ताकि अदालतों को किए गए कृत्य के स्तर और गंभीरता के अनुसार सजा देने की अधिक गुंजाइश रहेगी.
आयोग ने धारा 124 ए के वाक्यांश में बदलाव कर इसमें ”हिंसा भड़काने या सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने की प्रवृत्ति” शब्द जोड़ने को कहा है. आईपीसी की मौजूदा धारा 124ए में कहा गया है, ‘‘राजद्रोह – जो कोई भी बोले गए या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यारुपण द्वारा या अन्य कृत्यों द्वारा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयत्न करेगा या असंतोष को बढ़ाएगा या बढ़ाने का प्रयत्न करेगा, तो उसे आजीवान कारावास से जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा, या जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा. ’’
हालांकि, विधि आयोग ने धारा 124ए में संशोधन करने की सिफारिश करते हुए कहा, ‘‘राजद्रोह – जो कोई भी बोले गए या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यारुपण द्वारा या अन्य कृत्यों द्वारा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, असंतोष को बढ़ाएगा या बढ़ाने का प्रयत्न करेगा, हिंसा को भड़काने या लोक व्यवस्था बिगाड़ने की प्रवृत्ति से कृत्य करेगा तो उसे आजीवान कारावास से जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या सात वर्ष तक के कारावास से जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा, या जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा.
आयोग ने कहा कि ‘प्रवृत्ति’ का अर्थ वास्तविक हिंसा या हिंसा के लिए आसन्न खतरे के सबूत के बजाय, केवल हिंसा भड़काने या सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने की ओर झुकाव से होगा. विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतु राज अवस्थी (सेवानिवृत्त) ने हाल में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को रिपोर्ट सौंपी थी.