राष्ट्रमंडल खेल: मुक्केबाजी नीतू और हुसामुद्दीन ने पक्के किये भारत के मुक्केबाजी में दो पदक
बर्मिंघम. भारतीय मुक्केबाज नीतू गंघास और हुसामुद्दीन मोहम्मद ने बुधवार को यहां क्रमश: महिलाओं के 48 किग्रा और पुरूषों के 57 किग्रा वर्ग के सेमीफाइनल में पहुंचकर 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में पदक पक्के कर दिये. दो बार की युवा स्वर्ण पदक विजेता नीतू (21 वर्ष) को क्वार्टरफाइनल के तीसरे और अंतिम राउंड में उत्तरी आयरलैंड की प्रंितद्वद्वी निकोल क्लाइड के स्वेच्छा से रिटायर होने (एबीडी) के बाद विजेता घोषित किया गया जिससे देश का र्बिमंघम में पहला मुक्केबाजी पदक सुनिश्चित हुआ.
फिर निजामाबाद के 28 साल के हुसामुद्दीन नामीबिया के ट्रायागेन मार्निंग नदेवेलो पर 4-1 से जीत दर्ज कर अंतिम चार में पहुंच गये जिससे देश का दूसरा पदक पक्का हुआ. पिछले चरण के कांस्य पदक विजेता हुसामुद्दीन को हालांकि अपने मुकाबले के विभाजित फैसले में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी.
इससे पहले भिवानी के धनाना जिले की नीतू ने क्लाइड पर पहले दो राउंड में दबदबा बनाया जिसके बाद मुकाबला रोक दिया और नतीजा भारतीय मुक्केबाज के पक्ष में रहा. राष्ट्रमंडल खेलों में पदार्पण कर रही नीतू महान मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम के वजन वर्ग में खेल रही हैं. मैरीकॉम चयन ट्रायल्स के दौरान चोटिल हो गयी थीं.
भारतीय दल ने र्बिमंघम आने से पहले आयरलैंड में ट्रेंिनग ली थी और इससे नीतू को क्लाइड के खिलाफ मुकाबले में मदद मिली.
क्वार्टरफाइनल में मिली जीत के बाद आत्मविश्वास से भरी नीतू ने कहा, ‘‘यह प्रतिद्वंद्वी मुक्केबाज के खिलाफ मेरा पहला मुकाबला था लेकिन हमने आयरलैंड में एक साथ ट्रेंिनग की थी. मुझे पता था कि क्या उम्मीद की जाये. यह तो अभी शुरूआत है, मुझे लंबा रास्ता तय करना है. ’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने कोचों की सलाह सुनकर उसे ंिरग में इस्तेमाल करने की कोशिश करती हूं. ’’ स्ट्रैंड्जा मेमोरियल की स्वर्ण पदक विजेता नीतू अन्य मुक्केबाजों के वीडियो देखना पसंद नहीं करती और उनका कोई आदर्श भी नहीं है. उन्होंने 2012 में मुक्केबाजी शुरू की थी लेकिन 2019 में लगी कंधे की चोट से उन्हें लंबे समय तक खेल से बाहर होना पड़ा था नीतू जिस जगह से आयी हैं, वहां लड़कियों को खेलों में आने के लिये प्रोत्साहित नहीं किया जाता. लेकिन उनके पिता ने पास की अकादमी में उनका नाम लिखवा दिया. इस मुक्केबाज के सपने को साकार करने के लिये उनके पिता को चंडीगढ़ में अपनी नौकरी छोड़ने पर मजबूर कर दिया.
वह वित्तीय रूप से मजबूत भविष्य के लिये राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक की उम्मीद लगाये हैं. उन्होंने कहा, ‘‘हम संयुक्त परिवार में रहते हैं. मेरे पिता हर वक्त मेरे साथ रहते हैं इसलिये वो काम नहीं कर सकते. उनके बड़े भाई सारा खर्चा उठाते हैं क्योंकि हम संयुक्त परिवार में रहते हैं. उम्मीद है कि इस पदक से काफी अंतर आयेगा.’’