ट्रक ड्राइवरों की सेलरी इंजीनियरों से कम नहीं, फिर भी नहीं बनाना चाहते ड्राइवर
नई दिल्ली. ट्रक, ट्राला व बड़ी-बड़ी मशीनों को ढोने वाले भारी-भरकम वाहनों को चलाने वाले ड्राइवरों की सेलरी सुनकर आप चौंक जाएंगे. कमोबेश इंजीनियरिंग करके नई नौकरी ज्वाइन करने वाले युवा की बराबर सेलरी इनकी भी होती है.
ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री में जरूरत के अनुसार ड्राइवरों कमी है, यानी मौके भी भरपूर हैं. इसके बावजूद हम आप अपने बच्चों को इस पेशे में भेजना नहीं चाहते हैं. भले ही वो डिलीवरी बॉय बन जाएं, यह मंजूर है. आखिर इसकी वजह क्या है? एक्सपर्ट से मानें कि आखिर इसकी वजह क्या है.
ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) के कोर कमेटी के अध्यक्ष बाल मल्कीत सिंह बताते हैं कि ट्रक-बस ड्राइवरों की औसतन प्रति माह सेलरी 35000 से 40000 रुपये पड़ती है. रास्ते का खान-पान का खर्च अलग से होता है. इसके बावजूद लोग इस पेशे में नहीं आना चाहते हैं. ड्राइवरी करने के बजाए लोग 10000-12000 की नौकरी करना बेहतर समझते हैं. अगर बात ट्राला या बड़ी-बड़ी मशीनों को ढोने वाले वाहनों को चलाने की जाए तो उन ड्राइवरों की सेलरी 55000 से लेकर 60000 रुपये प्रति माह बैठती है. क्योंकि ट्रक या ट्राला चलाने वाले ड्राइवर नहीं चला पाते हैं. इनको चलाने वाले ड्राइवरों को खास ट्रेनिंग दी जाती है. वाहन निर्माता कंपनियां ड्राइवरों को ट्रेनिंग देकर सर्टिफिकेट देती हैं. इसके बाद ही भारी वाहन चला सकते हैं. ये वाहन रोजना 70 से 80 किमी. की दूरी तय करते हैं.
इस वजह से ट्रक ड्राइवर नहीं बनना चाहते
एआईएमटीसी के अध्यक्ष अमृत लाल मदान बताते हैं कि किसी को भी काम करने के लिए आसपास अच्छा माहौल चाहिए होता है, लेकिन ड्राइवरों का पूरा जीवन सड़कों पर बीतता है. रास्ते पर कहीं रुकने के लिए रेस्टरूम नहीं होते हैं. सर्दी,गर्मी, बरसात सभी मौसम में ड्राइवर ट्रकों पर ही सोता है. माल लेकर शहर पहुंचने वाले ट्रकों के ड्राइवरों के लिए नहाने-धोने या नेचरकाल के लिए शौचालय नहीं होते हैं. ड्राइवर इधर-उधर भटकता रहता है. जबकि ट्रक मालिक को 10 से 12 रुपये प्रति किमी. टोल चुकाना होता है.
इसके अलावा स्थानीय पुलिस या ट्रांसपोर्ट अधिकारी कहीं पर भी ट्रक रोक कर जांच के नाम पर परेशान करते हैं. जबकि वाहन और सारथी एप पर ट्रक की सारी डिटेल्स होती हैं और ई वे पर ट्रक पर लदे माल की सारी जानकारी होती है. इसके बादजूद सारे डाक्यमेंट्स मैन्युअल चेक करते हैं. राज्यों के चेकपोस्ट पर जांच के नाम पर 10 से 12 किमी. ट्रकों की लंबी लाइन लग जाती है. ड्राइवरों का समय और ईंधन दोनों बर्बाद होते हैं. इन वजहों से इस पेशे कम ही लोग आना चाहते हैं.
25 लाख ड्राइवरों की कमी
मौजूदा समय देश में करीब 25 लाख ड्राइवरों की कमी है. करीब 95 लाख ट्रक देशभर में रजिस्टर्ड हैं. लेकिन इन्हें चलाने के लिए ड्राइवर 70 लाख के करीब हैं. इस वजह से एक समय में 70 लाख ही ट्रक सड़कों पर चल पाते हैं.