परवेज मुशर्रफ अपने पीछे छोड़ गए एक ‘विवादित’ विरासत
देशद्रोह के लिए सजा-ए-मौत पाने वाले पाकिस्तान के पहले सैन्य शासक थे मुशर्रफ
नयी दिल्ली/इस्लामाबाद/दुबई. रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञों ने रविवार को कहा कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ अपने पीछे एक ‘‘विवादित विरासत’’ छोड़ गए हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ 1999 के करगिल युद्ध के सूत्रधार थे. हालांकि, बाद में मुशर्रफ को एहसास हुआ कि उन्हें अपने देश की स्थिरता के लिए भारत के साथ अच्छे संबंध रखने की जरूरत है.
पाकिस्तान में तैनात रहे पूर्व भारतीय उच्चायुक्त जी. पार्थसारथी और टी.सी.ए. राघवन ने मुशर्रफ की विरासत को ‘‘विवादित’’ बताया और कहा कि उन्होंने करगिल युद्ध के बाद महसूस किया कि अगर भारत के साथ अच्छे संबंध नहीं रखे गए तो पाकिस्तान में कुछ भी बदलाव नहीं आएगा.
राघवन ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच बेहतर संबंधों का दौर 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में शुरू हुआ था और यह प्रधानमंत्री मनमोहन ंिसह के कार्यकाल के दौरान नवंबर 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले तक जारी रहा.
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी के अपनी किताब ‘नाइदर ए हॉक, नॉर ए डव’ में किए गए इस दावे के बारे में पूछे जाने पर कि भारत और पाकिस्तान वाजपेयी और मुशर्रफ के बीच 2001 के आगरा शिखर सम्मेलन के दौरान कश्मीर समस्या का समाधान खोजने के करीब थे, राघवन ने कहा, ‘‘ऐसा था और इसमें थोड़ी सच्चाई है.’’ उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा कि मुशर्रफ के कार्यकाल में भारत-पाकिस्तान संबंधों में उतार-चढ़ाव दोनों देखे गए.
राघवन ने कहा, ‘‘मुशर्रफ करगिल युद्ध के सूत्रधार थे, लेकिन इसके बाद उन्होंने यह भी महसूस किया कि उन्हें भारत के साथ अच्छे संबंध रखने की जरूरत है और उन्होंने इस संबंध में अच्छी प्रगति की. विशेष रूप से नियंत्रण रेखा पर तनाव कम करके तथा सीमा पार व्यापार और लोगों की आवाजाही की शुरुआत करके कुछ सकारात्मक कदम उठाए गए. तो यह एक दोहरे प्रकार की विरासत है.’’
पार्थसारथी ने कहा, ‘‘जब मैं उच्चायुक्त था, मैं मुशर्रफ को व्यक्तिगत रूप से जानता था. वह करगिल युद्ध के सूत्रधार थे और उन्हें विश्वास था कि वह करगिल में पूरे पहाड़ी क्षेत्रों पर नियंत्रण करने में सफल होंगे और हमारे संचार तंत्र को प्रभावित कर सकेंगे.’’ उन्होंने कहा कि करगिल युद्ध में हार के बाद मुशर्रफ को अपने देश में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. पार्थसारथी ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘इस बात को लेकर कुछ संदेह था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को युद्ध के बारे में पूरी जानकारी थी या नहीं.’’ *
‘करगिल प्रकरण’ से ही मुशर्रफ और शरीफ के बीच टकराव पैदा हुआ: किताब
वर्ष 1999 में ‘‘करगिल युद्ध’’ ही पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल (सेवानिवृत्त) परवेज मुशर्रफ और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच दरार पैदा होने का कारण बना था, क्योंकि उन्होंने (शरीफ ने) खुद को पाक-साफ दिखाने के लिए इसके बारे में किसी भी तरह की जानकारी होने से इनकार कर दिया था. पूर्व सैन्य शासक द्वारा लिखित एक किताब से यह जानकारी मिली है.
मुर्शरफ द्वारा लिखी गई किताब ‘इन द लाइन आॅफ फायर: ए मेमॉयर’ पहली बार 25 सितंबर, 2006 को प्रकाशित हुई थी. मुर्शरफ ने करगिल युद्ध के बारे में इस किताब में लिखा है. उन्होंने लिखा है, ‘‘सेना द्वारा नवाज शरीफ के खिलाफ अभियान छेड़े जाने से पहले मैं केवल एक साल के लिए सेना प्रमुख था. दो प्रमुख जनरल की बर्खास्तगी, दो लेफ्टिनेंट जनरल की नियुक्ति और राजद्रोह के लिए एक पत्रकार का कोर्ट-मार्शल करने के अनुरोध पर कुछ असहमति को छोड़कर शुरुआत में उनके साथ मेरे कामकाजी संबंध बहुत बेहतर थे.’’
मुशर्रफ ने लिखा है कि वह उनके काम करने के तरीके से काफी चकित थे. उन्होंने लिखा, ‘‘मैंने उन्हें कभी कुछ पढ़ते या लिखते नहीं देखा.’’ उन्होंने किताब में दावा किया है, ‘‘करगिल प्रकरण ने सबसे बड़ा विभाजन पैदा किया. हम दोनों राजनीतिक और सैन्य रूप से कश्मीर को दुनिया की नजरों में मजबूती के साथ लाना चाहते थे. करगिल प्रकरण से ऐसा (संभव) हो पाया था.’’ उन्होंने लिखा कि जब बाहरी राजनीतिक दबाव के कारण शरीफ को संघर्ष विराम के लिए सहमत होना पड़ा तो वह मायूस हो गये थे.
उन्होंने किताब में लिखा है, ‘‘राष्ट्रीय एकजुटता के जरिये ताकत दिखाने के बजाय उन्होंने (शरीफ ने) सेना को दोषी ठहराया और खुद को पाक-साफ दिखने की कोशिश की.’’ मुशर्रफ ने लिखा, ‘‘उन्होंने सोचा कि अगर वह (शरीफ) करगिल अभियान के बारे में कोई भी जानकारी होने से इनकार करते हैं तो वह अधिक सुरक्षित होंगे.’’ मुशर्रफ ने किताब में लिखा है कि करगिल प्रकरण की वजह से शरीफ ने खुद को सेना के साथ टकराव के रास्ते पर खड़ा कर लिया.
उन्होंने लिखा, ‘‘चार जुलाई को संघर्ष विराम हुआ और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल ंिक्लटन ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ बातचीत की. संघर्ष विराम के लिए बहुत अंतरराष्ट्रीय दबाव था. राष्ट्रपति ंिक्लटन का पाकिस्तान और भारत दोनों में प्रभाव था. शरीफ बिना शर्त वापसी पर सहमत हुए और उन्होंने सैन्य स्थिति के बारे में गलत बातें प्रचारित की.’’ मुशर्रफ ने ही करगिल युद्ध की साजिश रची थी, जो महीनों तक चला था. यह युद्ध तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लाहौर में भारत के अपने समकक्ष अटल बिहारी वाजपेयी के साथ ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद शुरू हुआ था.
देशद्रोह के लिए सजा-ए-मौत पाने वाले पाकिस्तान के पहले सैन्य शासक थे मुशर्रफ
पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ 2007 में संविधान को पलटने के लिए मुल्क के इतिहास में मृत्युदंड पाने वाले पहले सैन्य शासक बने थे. पाकिस्तान की एक अदालत ने दिसंबर 2019 में देशद्रोह के एक मामले में उन्हें मौत की सजा सुनायी थी. यह मामला नवंबर 2007 का है, जब मुशर्रफ ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में संविधान को निलंबित कर दिया था और अपने कार्यकाल की अवधि बढ़ाने के लिए आपातकाल लागू किया था. इसके बाद उन्होंने महाभियोग के खतरे से बचने के लिए 2008 में इस्तीफा दे दिया था.
जब उनके कट्टर दुश्मन नवाज शरीफ 2013 में सत्ता में लौटे, तो उन्होंने मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा शुरू किया. मुशर्रफ ने 1999 में तख्तापलट करते हुए शरीफ को अपदस्थ कर दिया था. पूर्व जनरल पर मार्च 2014 में देशद्रोह का आरोप लगाया गया. हालांकि, उन्होंने इस मामले को राजनीति से प्रेरित बताया था. पेशावर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वकार अहमद सेठ की अगुवाई वाली विशेष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने इस ऐतिहासिक मामले में फैसला सुनाया था.
अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति को नवंबर 2007 में संविधान को निरस्त करके तथा संविधान से परे आपातकाल लागू करके देशद्रोह का दोषी ठहराया था तथा उन्हें सजा-ए-मौत सुनायी थी. इस तरह मुशर्रफ पर संविधान को पलटने के लिए दोषी ठहराए जाने वाले पहले सैन्य शासक बनने का कलंक भी लगा.
पाकिस्तान के तीन सेना प्रमुख जनरल अयूब खान, जनरल याह्या खान और जनरल जिया-उल-हक ने भी संविधान को निरस्त किया था, लेकिन उन पर कोई अदालती मुकदमा नहीं चला. मुशर्रफ को सजा मिलना पाकिस्तान में अत्यधिक महत्वपूर्ण क्षण था, जहां प्रभावशाली सेना ने देश के 75 साल के इतिहास में करीब आधे वक्त तक राज किया.
पाक के पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ के सत्ता में रहने के दौरान भारत के साथ संबंधों के अहम पड़ाव
पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक जनरल (सेनानिवृत्त) परवेज मुशर्रफ का रविवार को लंबी बीमारी के बाद दुबई में निधन हो गया. वह वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के सूत्रधार थे चार सितारा जनरल मुशर्रफ 79 साल के थे. उन्होंने तानाशाह की शैली में पाकिस्तान पर शासन किया था. उनका जन्म अविभाजित भारत के दिल्ली में हुआ था. अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने जम्मू-कश्मीर सहित विभिन्न मुद्दों पर भारत के साथ बातचीत की. मुशर्रफ के भारत के साथ संबंध के अहम पड़ाव इस प्रकार हैं.
अगस्त 1943 : मुशर्रफ का जन्म 1943 में दिल्ली में हुआ और देश का बंटवारा होने के बाद उनका परिवार 1947 में नव सृजित देश पाकिस्तान में जाकर बस गया.
जून 1964 : मुशर्रफ पाकिस्तान सैन्य अकादमी में भर्ती हुए.
अक्टूबर 1999 : तत्कालीन सेना प्रमुख मुशर्रफ ने देश में रक्तहीन सैन्य तख्तापलट का नेतृत्व किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पदच्युत कर देश के शासन की बागडोर मुख्य कार्यकारी के तौर पर संभाली.
जून 2001 : मुशर्रफ ने तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद रफीक तरार के इस्तीफे के बाद स्वयं को पाकिस्तान का राष्ट्रपति घोषित किया.
जुलाई 2001 : मुशर्रफ और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आगरा में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में मुलाकात की. जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर समझौता करने में असफल होने के बाद शिखर सम्मेलन असफल रहा.
13 दिसंबर 2001 : भारत के संसद पर आतंकवादी हमला हुआ, जिसमें 14 लोग मारे गए. भारत ने हमले के लिए पाकिस्तान से संचालित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए -मोहम्मद को हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया. इसके बाद भारत और पाकिस्तान ने सीमा और नियंत्रण रेखा के पास भारी सैन्य तैनाती की. यह गतिरोध अक्टूबर 2002 में जाकर समाप्त हुआ.
मार्च 2002 : मुशर्रफ ने वादा किया कि पाकिस्तान अपनी जमीन पर चरमपंथ के खिलाफ लड़ेगा, लेकिन दावा किया कि उनके देश का कश्मीर पर अधिकार है.
सितंबर 2003 : मुशर्रफ ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का आ’’ान किया , बाद में भारत और पाकिस्तान ने तनाव कम करने और सीमा पर शत्रुतापूर्ण संबंध रोकने का समझौता किया.
जनवरी 2004 : भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस्लामाबाद में आयोजित 12वें दक्षेस शिखर सम्मेलन में मुशर्रफ के साथ सीधी बातचीत की और बाद में उस साल दोनों देशों के विदेश सचिवों की बैठक हुई. इससे समग्र बातचीत की प्रक्रिया शुरू हुई, जिसमें सरकार के विभिन्न स्तरों (विदेश मंत्रालय, विदेश सचिवों, सैन्य अधिकारियों, सीमा सुरक्षा अधिकारियों, स्वापक रोधी अधिकारियों और परमाणु विशेषज्ञ) पर अधिकारियों की बैठकें हुईं.
नवंबर 2004 : नव निर्वाचित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जम्मू-कश्मीर दौरे की पूर्व संध्या पर घोषणा की गई कि भारत राज्य में अपने सैनिकों की संख्या में कमी लाएगा.
सितंबर 2006 : मुशर्रफ और मनमोहन सिंह आतंकवाद के खिलाफ भारत-पाकिस्तान संस्थागत व्यवस्था स्थापित करने पर सहमत हुए .
नवंबर 2006 : मुशर्रफ ने भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की उनकी बैटिंग कला और लंबे बालों की प्रशंसा की. धोनी उस समय युवा खिलाड़ी थे और एक दिवसीय और टेस्ट मैच खेलने पाकिस्तान गई भारतीय टीम का हिस्सा थे. मुशर्रफ ने धोनी को बाकायदा बाल नहीं कटवाने की सलाह दी थी.
भारत की एक पाठ्यपुस्तक में मुशर्रफ को ‘महान हस्ती’ बताने से छिड़ा था विवाद
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को एक बार भारत में तीसरी कक्षा की पाठ्यपुस्तक में दुनिया की ‘‘छह महान हस्तियों’’ में शुमार किए जाने से विवाद छिड़ गया था जिसे बाद में वापस ले लिया गया था. मुशर्रफ का रविवार को निधन हो गया. किताब ‘नैतिक शिक्षा, सामान्य ज्ञान एवं योग’ मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित एक निजी स्कूल में पढ़ाई जा रही थी. इस पाठ्यपुस्तक के एक अध्याय में 1999 के करगिल युद्ध के सूत्रधार पूर्व सैन्य शासक को ‘‘छह महान हस्तियों’’ में से एक के रूप में चित्रित किया गया. इसमें उनकी तस्वीर भी लगाई गई थी.
जिला बार एसोसिएशन (डीबीए) ने अध्याय पर कड़ी आपत्ति जताई थी और इस संबंध में जिला प्रशासन से शिकायत की थी, जिसके बाद अवधपुरी स्थित क्राइस्ट आशा स्कूल ने 2015 में किताब वापस ले ली थी. डीबीए ने कहा था, ‘‘यह बेहद आपत्तिजनक है. मुशर्रफ के चलते करगिल युद्ध हुआ, जिसमें कई भारतीय सैनिकों की जान चली गई.’’ इसने कहा था, ‘‘यह राज्य और केंद्रीय शिक्षा विभागों की अज्ञानता है कि छोटी सी उम्र में बच्चों को यह पाठ पढ़ाया जा रहा है, जो मुशर्रफ को एक महान हस्ती के रूप में दिखाता है. यह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है.’’ डीबीए के एक प्रतिनिधिमंडल ने जिलाधिकारी के समक्ष एक आवेदन देकर पुस्तक के लेखक और प्रकाशक के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी.
दाऊद इब्राहिम को भारत को सौंप दो: आडवाणी ने 2001 में मुशर्रफ से कहा था
मुंबई में 1993 में हुए बम विस्फोटों का षडयंत्रकर्ता दाऊद इब्राहिम बेशक अभी तक भारत की गिरफ्त में नहीं आया है लेकिन 2001 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भारत दौरे पर आये पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से इस वैश्विक आतंकवादी को सौंपने के लिए कहा था.
आडवाणी ने 2011 में एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा था, ‘‘दाऊद इब्राहिम का नाम सुनकर मुशर्रफ के चेहरे का रंग उड़ गया था और वह असहज हो गये थे. वह अपनी बेचैनी को बड़ी मुश्किल से छुपा पा रहे थे.’’ मुशर्रफ आगरा शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए भारत आये हुए थे और इस दौरान आडवाणी ने मुशर्रफ से मुलाकात की थी.
पूर्व गृह मंत्री ने यह भी बताया था कि अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के छावनी शहर एबटाबाद में स्थित ठिकाने को तब बनाया गया था जब मुशर्रफ का पाकिस्तान पर ‘‘पर्याप्त नियंत्रण था.’’ हालांकि मुशर्रफ ने इस बात का खंडन करते हुए कहा था कि दाऊद इब्राहिम उनके देश में नहीं है.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा था, ‘‘मुशर्रफ की बेचैनी साफ झलक रही थी और उन्होंने कहा था: ‘मिस्टर आडवाणी, मैं आपको दृढ़तापूर्वक बता दूं कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में नहीं है.’’ आडवाणी ने लिखा था, ‘‘लेकिन ‘‘बैठक के दौरान मौजूद पाकिस्तानी अधिकारियों में से एक ने मुझसे बाद में कहा ‘‘हमारे राष्ट्रपति ने उस दिन दाऊद इब्राहिम के बारे में जो कहा वह सफेद झूठ था.’’ घटनाक्रम का जिक्र करते हुए आडवाणी ने लिखा था कि मुशर्रफ ने भारत और पाकिस्तान के बीच प्रत्यर्पण संधि संबंधी उनके सुझाव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी. आडवाणी ने तब उनसे कहा ‘‘यदि आप मुंबई में 1993 में हुए बम विस्फोटों के मुख्य आरोपी दाऊद इब्राहिम को भारत को सौंप देते हैं तो इससे शांति प्रक्रिया में अहम सहयोग मिलेगा.’’
‘पाकिस्तान मुशर्रफ के शासन काल में भारत के साथ कश्मीर मुद्दा सुलझाने के करीब पहुंच गया था’
वर्ष 2004-07 के दौरान राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में पर्दे के पीछे की वार्ता के बाद पाकिस्तान और भारत कश्मीर मुद्दा सुलझाने के लिए चार सूत्रीय एक फ्रेमवर्क के करीब पहुंच गये थे, लेकिन कुछ राजनीति घटनाक्रम के कारण इसे मूर्त रूप नहीं दिया जा सका. यह बात पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने करीब आठ साल पहले कही थी.
परवेज मुशर्रफ 1999 में रक्तहीन तख्तापलट में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार को बेदखल करते हुए सत्ता पर काबिज हो गये थे. दिल्ली में जन्मे पूर्व सैन्यशासक मुशर्रफ का लंबी बीमारी के बाद दुबई में रविवार को निधन हो गया. वह 79 साल के थे.
वर्ष 2015 में प्रकाशित अपनी किताब ‘ नाइदर ए हॉक नॉर ए डोव’ में कसूरी ने इस वार्ता के कई चरणों और दोनों पक्षों की ओर से उठाये गये कदमों का जिक्र किया है और दावा किया है कि दो परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसियों के बीच इस लंबित समस्या का एक ‘आॅउट आॅफ बॉक्स’ (अलग और नये नजरिये वाला) समाधान था.
भारत और पाकिस्तान ने दो लड़ाइयां लड़ीं जिसके बाद 1999 का कारगिल संघर्ष हुआ. पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन प्रमुख मुशर्रफ को कारगिल संघर्ष का सूत्रधार माना जाता है. मुशर्रफ के राष्ट्रपति रहने के दौरान पाकिस्तान के विदेश मंत्री रहे कसूरी ने लिखा, ‘‘हमने सितंबर 2004 में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन ंिसह के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जे.एन. दीक्षित से कश्मीर के लिए ‘आॅउट आॅफ बॉक्स’ (नये और अलग तरह का) समाधान का जिक्र करते हुए सुना.’’ पूर्व पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने मुशर्रफ की किताब ‘इन द लाइन आॅफ फायर’ का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर अलग नजरिया वाले समाधान की जरूरत के बारे में लिखा है.
9/11 हमले के बाद अमेरिका ने पाक को नेस्तनाबूद करने की धमकी दी थी : मुशर्रफ ने संस्मरण में कहा था
अमेरिका ने 9/11 के आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को धमकी दी थी कि यदि उन्होंने अफगानिस्तान के खिलाफ उसके (अमेरिका के) युद्ध में सहयोग नहीं किया तो उनके देश (पाकिस्तान) को बम हमले से ‘पाषाण युग’ में भेज दिया जाएगा.
मुशर्रफ ने अपने संस्मरण ‘इन द लाइन आॅफ फायर’ में लिखा था कि सख्त बातचीत वाले अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री रिचर्ड आर्मिटेज ने पाकिस्तान की इंटर-र्सिवसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) प्रमुख के साथ बातचीत में यह धमकी दी थी. आईएसआई प्रमुख 11 सितम्बर 2001 को अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों के वक्त वांिशगटन दौरे पर थे.
मुशर्रफ ने ‘ट्विन टावर पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद की स्थिति का वर्णन करते हुए लिखा था, ‘‘अब तक के सबसे अराजनयिक बयान में आर्मिटेज ने आईएसआई के महानिदेशक से कहा था कि हमें (पाकिस्तान को) केवल यह तय करना है कि हम अमेरिका के साथ हैं या आतंकवादियों के साथ, लेकिन यदि हमने आतंकवादियों को चुना, तो फिर हमें पाषाण युग में ले जाने वाले बम हमलों के लिए तैयार रहना चाहिए.’’ मुशर्रफ ने कहा है कि यह आश्चर्यजनक खुली धमकी थी, लेकिन यह स्पष्ट था कि अमेरिका ने करारा पलटवार करने का फैसला किया था.
मुशर्रफ ने अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व वाले युद्ध में शामिल होने के अपने कदम का बचाव करते हुए कहा कि उनका ‘‘निर्णय अपने लोगों की भलाई के लिए और अपने देश के सर्वोत्तम हित पर आधारित था.’’ उन्होंने किताब में लिखा, ‘‘यदि हम अमेरिका का समर्थन नहीं करते तो ंिहसक और क्रोधित प्रतिक्रियाओं का सामना करना होता. इस प्रकार सवाल यह था: यदि हम उनके साथ नहीं जुड़ते हैं, तो क्या हम उनके हमले का सामना कर सकते हैं? जवाब था नहीं, हम नहीं कर सकते….’’ उन्होंने कहा, हालांकि, अमेरिका का समर्थन करने के कई फायदे हैं.