भारत, अमेरिका ने रक्षा औद्योगिक सहयोग के लिए महत्वाकांक्षी रूपरेखा तय की
नयी दिल्ली. भारत और अमेरिका ने सोमवार को सैन्य मंचों तथा उपकरणों का साथ मिलकर विकास करने के लिए विभिन्न परियोजनाओं को उच्च प्राथमिकता देने के वास्ते रक्षा औद्योगिक सहयोग की महत्वाकांक्षी रूपरेखा तय की. यह कदम यूक्रेन युद्ध और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता की पृष्ठभूमि में उठाया गया है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिका के उनके समकक्ष लॉयड ऑस्टिन के बीच वार्ता के दौरान यह रूपरेखा तय की गई. ऑस्टिन दो दिन की यात्रा पर रविवार को नयी दिल्ली पहुंचे. यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा से दो सप्ताह पहले हो रही है.
ऑस्टिन ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि भारत-अमेरिका साझेदारी, मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ”आधारशिला” है और मजबूत होते संबंध यह दिखाते हैं कि दो ”महान शक्तियों” के बीच प्रौद्योगिकी नवोन्मेष और बढ़ता सैन्य सहयोग वैश्विक भलाई के लिए एक ताकत बन सकता है.
अमेरिकी रक्षा मंत्री ने कहा कि अमेरिका-भारत सहयोग मायने रखता है ”क्योंकि हम सभी तेजी से बदलती दुनिया का सामना कर रहे हैं. हम चीन की दादागिरी और जबरदस्ती तथा यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता देख रहे हैं.” ऐसी जानकारी है कि सिंह और ऑस्टिन ने लड़ाकू विमानों के इंजन के लिए भारत के साथ प्रौद्योगिकी साझा करने के जनरल इले्ट्रिरक के प्रस्ताव और अमेरिकी रक्षा उपकरण कंपनी जनरल एटॉमिक्स एयरोनॉटिकल सिस्टम्स इंक से तीन अरब अमेरिकी डॉलर के 30 एमक्यू-9बी सशस्त्र ड्रोन खरीदने की भारत की योजना पर भी चर्चा की.
अमेरिकी रक्षा मंत्री ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से भी अलग से बातचीत की. ऑस्टिन ने कहा, ”हमने सह-विकास और सह-उत्पादन परियोजनाओं के लिए उच्च प्राथमिकता के साथ और हमारे रक्षा उद्योगों के बीच करीबी संबंध बनाने के लिए रक्षा औद्योगिक सहयोग के वास्ते महत्वाकांक्षी नयी रूपरेखा तय की है.” उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका की आगामी यात्रा का परोक्ष उल्लेख करते हुए कहा, ”हम आगामी यात्राओं के दौरान इनमें से कुछ परियोजनाओं पर आगे बढ़ने को लेकर उत्साहित हैं.”
दोंनो पक्षों ने समुद्री सहयोग में सुधार लाने के लिए नयी पहलों के साथ ही सूचना साझा करने के तरीकों को बढ़ाने पर भी चर्चा की.
रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि दोनों पक्ष दोनों देशों के रक्षा स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र के बीच बढ़ते सहयोग को सुविधाजनक बनाने के अलावा नयी प्रौद्योगिकियों के सह-विकास और मौजूदा तथा नयी प्रणालियों के सह-उत्पादन के अवसरों की पहचान करेंगे.
इसमें कहा गया, “इन उद्देश्यों की दिशा में, उन्होंने अमेरिका-भारत रक्षा औद्योगिक सहयोग के लिए एक रोडमैप तैयार किया जो अगले कुछ वर्षों के लिए नीतिगत दिशा का मार्गदर्शन करेगा.” मंत्रालय ने कहा कि सिंह और ऑस्टिन के बीच बैठक “गर्मजोशी भरी और सौहार्दपूर्ण” रही तथा दोनों पक्षों ने औद्योगिक सहयोग को मजबूत करने के तरीकों की पहचान करने पर विशेष ध्यान देने के साथ द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के मुद्दों पर व्यापक चर्चा की.
सिंह ने सिलसिलेवार ट्वीट में कहा कि वार्ता रणनीतिक हितों और सुरक्षा सहयोग सहित कई क्षेत्रों में रक्षा सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित रही. सिंह ने कहा, “भारत-अमेरिका की साझेदारी एक मुक्त, खुला और नियम आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है. हम क्षमता निर्माण एवं अपनी रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के लिए अमेरिका के साथ मिलकर काम करने के लिए तत्पर हैं.” रक्षा मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्षों ने मजबूत और विभिन्न द्विपक्षीय रक्षा सहयोग गतिविधियों की समीक्षा की और संबंधों की गति को बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की.
इसने कहा, “उन्होंने हाल ही में रक्षा कृत्रिम मेधा और रक्षा अंतरिक्ष पर केंद्रित उद्घाटन वार्ता का स्वागत किया. उन्होंने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने में अपनी साझा रुचि को देखते हुए क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर भी चर्चा की.” ऑस्टिन ने मीडिया ब्रीफिंग में अपनी टिप्पणी में कहा कि दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के रूप में, भारत और अमेरिका की नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को संरक्षित करने में एक अनूठी भूमिका है जो “हम सभी को सुरक्षित रखती है”.
उन्होंने कहा, “हमारी वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी तेजी से बढ़ रही है. आज अमेरिका-भारत साझेदारी एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत के लिए एक आधारशिला है. हमारे गहरे होते बंधन से पता चलता है कि कैसे दो महान शक्तियों के बीच तकनीकी नवाचार और बढ़ता सैन्य सहयोग वैश्विक कल्याण के लिए एक शक्ति हो सकता है.” ऑस्टिन ने सिंह और डोभाल के साथ अपनी बातचीत को “सार्थक” करार दिया.
उन्होंने कहा, “लोकतंत्रों को अब सामान्य हितों और साझा मूल्यों के मामले में एक साथ होना चाहिए. शांति और समृद्धि के लिए स्वतंत्रता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना आवश्यक है और इसके लिए अमेरिका तथा भारत से जोरदार नेतृत्व की आवश्यकता है.” ऑस्टिन ने कहा, “इसलिए हमें अभी भी बहुत काम करना है. मुझे विश्वास है कि अमेरिका-भारत साझेदारी हिंद-प्रशांत और व्यापक दुनिया के लिए एक मुक्त और समृद्ध भविष्य सुरक्षित करने में मदद करेगी.” अमेरिका ने जून, 2016 में भारत को एक ‘बड़े रक्षा साझेदार’ का दर्जा दिया था, जिससे अहम रक्षा उपकरणों एवं प्रौद्योगिकी को साझा करने का मार्ग प्रशस्त हुआ.
पिछले साल मई में एक बड़े कदम के तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने दोनों देशों के बीच रणनीतिक प्रौद्योगिकी साझेदारी तथा रक्षा औद्योगिक सहयोग बढ़ाने के लिए ‘अमेरिका-भारत अहम एवं उभरती प्रौद्योगिकी पहल’ की घोषणा की थी. अमेरिकी रक्षा मंत्री सिंगापुर से यहां पहुंचे हैं. ऑस्टिन की यह भारत की दूसरी यात्रा है. इससे पहले, उन्होंने मार्च 2021 में भारत की यात्रा की थी.
सिंगापुर में शुक्रवार को ‘शांगरी-ला वार्ता’ में अपने संबोधन में ऑस्टिन ने कहा था, ”भारत के साथ अहम एवं उभरती प्रौद्योगिकी पहल (आईसीईटी) हमें अहम रक्षा उपकरणों को साथ मिलकर विकसित करने का मार्ग ढूंढ़ने की अनुमति देती है.” आईसीईटी से दोनों देशों की सरकार, शिक्षा जगत और उद्योग के बीच कृत्रिम मेधा (एआई), क्वांटम कंप्यूटिंग, 5जी और 6जी, बायोटेक, अंतरिक्ष और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में घनिष्ठ संबंध स्थापित होने की उम्मीद है.