देश को आर्थिक संकट से निकालने के लिए अलोकप्रिय फैसलों को जारी रखेंगे : विक्रमसिंघे
कोलंबो. गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने बुधवार को देश के ‘‘विभाजन’’ से इनकार किया, लेकिन ‘‘एकजुट राष्ट्र’’ के भीतर शक्तियों के हस्तांतरण के साथ आगे बढ़ने और अपने ‘‘राजनीतिक रूप से अलोकप्रिय’’ निर्णयों को जारी रखने का वादा किया.
एक प्रमुख नीतिगत भाषण में विक्रमसिंघे ने संसद को यह भी बताया कि 2.9 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ बातचीत अंतिम चरण में है. विक्रमसिंघे ने सांसदों से कहा, ‘‘हम एकजुट राष्ट्र के भीतर सत्ता के हस्तांतरण की उम्मीद करते हैं. हालांकि, मैं एक तथ्य को दोहराना चाहता हूं, जिस पर कई मौकों पर जोर दिया गया है…देश का कोई विभाजन नहीं होगा.’’
विक्रमसिंघे ने संविधान के 13वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करने की इच्छा व्यक्त की है लेकिन प्रभावशाली बौद्ध भिक्षुओं ने इसका विरोध किया था. हालांकि, राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में इसका कोई उल्लेख नहीं किया. राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘पिछले सभी प्रयास विफल रहे हैं, लेकिन हम इस बार सफल होना चाहते हैं. हम निरंतर आपके समर्थन की उम्मीद करते हैं.’’ उन्होंने कहा कि उत्तरी और पूर्वी हिस्से में संघर्ष ने पूरे देश को प्रभावित किया और कई क्षेत्रों को गंभीर नुकसान हुआ. उत्तरी प्रांत पूरी तरह से और पूर्वी और उत्तरी मध्य प्रांतों में कई क्षेत्रों को युद्ध से अत्यधिक नुकसान हुआ.
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हम इन क्षेत्रों के विकास पर अधिक जोर देने के लिए कदम उठा रहे हैं. इस संबंध में एक सामान्य योजना लागू की जा रही है.’’ कुछ दिन पहले पूर्व एक प्रभावशाली बौद्ध भिक्षु द्वारा इस कदम का कड़ा विरोध करते हुए दावा किया गया था कि यह देश की एकात्मक प्रकृति को चुनौती देता है. विक्रमसिंघे ने देश में अल्पसंख्यक तमिलों को राजनीतिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए संविधान के 13वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है.
भारत 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद लाए गए 13ए को लागू करने के लिए श्रीलंका पर दबाव बना रहा है. ंिसहली मुख्य रूप से बौद्ध हैं जो श्रीलंका की 2.2 करोड़ आबादी का लगभग 75 प्रतिशत हैं जबकि तमिल 15 प्रतिशत हैं. आर्थिक संकट के बारे में विक्रमसिंघे ने कहा कि श्रीलंका के 2026 तक दिवालियापन से उबरने की उम्मीद है. उन्होंने कहा, ‘‘अतीत के बारे में नहीं बल्कि भविष्य के बारे में सोचें. आइए सहमति के साथ एकजुट हों और देश को मौजूदा संकट से उबरने में समर्थन देने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ें.’’
राष्ट्रपति ने कहा कि उनके द्वारा लिए गए अलोकप्रिय फैसलों के आने वाले वर्षों में सकारात्मक परिणाम होंगे. विक्रमसिंघे ने कहा, ‘‘कर के संबंध में नयी नीतियों की शुरुआत राजनीतिक रूप से अलोकप्रिय निर्णय है. याद रखें, मैं यहां लोकप्रिय होने नहीं आया हूं. मैं इस देश को संकट की स्थिति से निकालना चाहता हूं. हां, मैं राष्ट्र के लिए अलोकप्रिय निर्णय लेने को तैयार हूं. लोग दो से तीन साल में उन फैसलों के महत्व का एहसास करेंगे.’’ श्रीलंका सरकार ने कर वृद्धि और अन्य सख्त आर्थिक उपायों की शुरुआत की है. वहीं, श्रमिक संगठनों और विपक्षी दलों ने ऐसे उपायों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है. चिकित्सा सहित सभी क्षेत्रों के संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया. डॉक्टरों ने 24 घंटे की हड़ताल शुरू की थी.
विक्रमसिंघे ने कहा कि अगर कर बढ़ोतरी को लागू नहीं किया गया तो देश को 63 अरब डॉलर का नुकसान होगा. उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान में हम इस आय को गंवाने की स्थिति में नहीं हैं.’’ राष्ट्रपति ने कहा कि देश नकारात्मक अर्थव्यवस्था से सकारात्मक अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ चुका है. उन्होंने कहा, ‘‘2023 के अंत तक, हम आर्थिक विकास हासिल कर सकते हैं.’’ विक्रमसिंघे ने कहा कि पिछले साल जुलाई में जब उन्होंने राष्ट्रपति का पद संभाला था तब महंगाई दर 70 फीसदी थी जो अब जनवरी में घटकर 54 फीसदी रह गई है.
श्रीलंका 2022 में अभूतपूर्व वित्तीय संकट की चपेट में आ गया था. विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी के कारण, देश में राजनीतिक उथल-पुथल मच गई, जिसके कारण शक्तिशाली राजपक्षे परिवार को सत्ता से हटना पड़ा.