गरिमा के साथ जीने के अधिकार में ‘जातिवाद से नहीं बंधा’ होना शामिल है: दिल्ली उच्च न्यायालय
नयी दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि गरिमा के साथ जीने के अधिकार में जातिवाद से बंधे नहीं रहना भी शामिल है. इसके साथ ही अदालत ने केंद्रीय माध्यमिक परीक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दो भाइयों के कक्षा 10 और 12 के प्रमाण-पत्रों में अपने पिता के उपनाम में बदलाव के अनुरोध पर अमल करने का निर्देश दिया. दोनों भाइयों ने सामाजिक कलंक के कारण अपने पिता का उपनाम बदलने का आग्रह किया था.
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने कहा कि सीबीएसई द्वारा प्रमाणपत्रों में आवश्यक परिवर्तन करने से इनकार करना “पूरी तरह से अनुचित” है और यदि कोई व्यक्ति किसी के पूर्वाग्रह से ग्रसित होने से बचने के लिए किसी विशेष जाति के साथ अपनी पहचान नहीं कराना चाहता, तो इसकी अनुमति दी है.
अदालत ने कहा, ”यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि याचिकाकर्ताओं को एक ऐसी पहचान रखने का पूरा अधिकार है, जो उन्हें समाज में एक प्रतिष्ठित और सम्मानजनक पहचान देता है. पहचान का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक आंतरिक हिस्सा है.” याचिका के जवाब में सीबीएसई ने कहा था कि उपनाम में बदलाव से याचिकाकर्ताओं की जाति में बदलाव होगा, जिसका दुरुपयोग किया जा सकता है.
अदालत ने, हालांकि, स्पष्ट किया कि पिता के उपनाम में परिवर्तन से याचिकाकर्ताओं की जाति में परिवर्तन अपरिहार्य नहीं होगा या उन्हें किसी आरक्षण या किसी अन्य लाभ की अनुमति नहीं होगी जो अद्यतन जाति/उपनाम के लिए उपलब्ध हो सकता है. याचिकाकर्ता भाइयों ने अदालत को बताया कि उनके पिता ने अपने उपनाम के आधार पर दिन-प्रतिदिन होने वाले जातिगत अत्याचारों के कारण अपना उपनाम बदलने का फैसला किया.
न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता भाइयों को समाज में “प्रतिष्ठित और सम्मानजनक” पहचान रखने का पूरा अधिकार है और अगर उन्हें अपने उपनाम के कारण कोई नुकसान हुआ है, तो वे “निश्चित रूप से अपनी पहचान बदलने के हकदार हैं, जो सामाजिक संरचना में याचिकाकर्ताओं को सम्मान दे सके.”
अदालत ने पिछले महीने पारित एक आदेश में कहा, “इसलिए, सीबीएसई को निर्देश दिया जाता है कि वह याचिकाकर्ताओं के 10वीं और 12वीं के प्रमाणपत्रों में उनके पिता के नाम (बदले हुए उपनाम के साथ) अंकित करने के लिए आवश्यक बदलाव करे.” अदालत ने कहा कि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जीवन के अधिकार के तहत गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है और इसमें किसी भी जातिवाद से बंधा न होना भी शामिल है. अदालत ने कहा कि सीबीएसई उपनाम के सुधार के लिए आवश्यक किसी भी दस्तावेज की मांग करने के लिए स्वतंत्र है.