सीतलवाड़ के खिलाफ न्यायालय की टिप्पणियों की आलोचना ‘राजनीति से प्रेरित’
नयी दिल्ली. पूर्व न्यायाधीशों और अधिकारियों के एक समूह ने मंगलवार को कहा कि कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों की समाज के एक वर्ग द्वारा की जा रही निंदा ‘‘राजनीति से प्रेरित’’ है. समूह ने सीतलवाड़ के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किए जाने का भी समर्थन किया. इस संबंध में 190 पूर्व न्यायाधीशों और अधिकारियों के समूह ने एक बयान में कहा कि सीतलवाड़ और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किया जाना कानून के अनुरूप है तथा आरोपी हमेशा न्यायिक उपचार का सहारा ले सकते हैं.
बयान में कहा गया, “राजनीतिक रूप से प्रेरित नागरिक समाज के एक वर्ग ने बड़े पैमाने पर न्यायपालिका की ईमानदारी पर आक्षेप लगाने का प्रयास किया है और इस मामले में, इस वर्ग ने न्यायपालिका पर उन टिप्पणियों को हटाने के लिए दबाव बनाने का प्रयास किया है जो सीतलवाड़ और उन दो दोषी पूर्व-आईपीएस अधिकारियों के विरुद्ध हैं जिन्होंने सबूत गढ़ने का काम किया.”
समूह ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने एक ऐसे मामले में कार्रवाई की जो उसके अधिकार क्षेत्र में था और उसकी कार्यवाही में संशोधन के लिए कोई भी कार्रवाई एक नियमित प्रस्ताव के रूप में होनी चाहिए. इसने कहा कि यहां तक ??कि नागरिक समाज के इस वर्ग का दावा है कि नागरिक पूरी तरह से व्यथित हैं और अदालत के आदेश से निराश हैं.
तेरह सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, 90 पूर्व नौकरशाहों और सशस्त्र बलों के 87 पूर्व अधिकारियों ने अपने बयान में कहा कि कानून का पालन करने वाले नागरिक कानून के शासन को बाधित किए जाने के प्रयास से व्यथित और निराश हैं. उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति आर.एस. राठौर, एस.एन. ढींगरा और एम.सी. गर्ग के अलावा पूर्व आईपीएस अधिकारी- संजीव त्रिपाठी, सुधीर कुमार, बी. एस. बस्सी और करनल सिंह, पूर्व आईएएस अधिकारी- जी. प्रसन्ना कुमार और पी. चंद्रा तथा लेफ्टिनेंट जनरल (अवकाशप्राप्त) वी. के. चतुर्वेदी हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल हैं.
उनके बयान का शीर्षक “न्यायपालिका में हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं” है. कई मानवाधिकार समूहों और नागरिक समाज के सदस्यों ने सीतलवाड़ और अन्य के खिलाफ उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों की आलोचना की थी. गुजरात दंगा मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद गुजरात पुलिस ने मामला दर्ज किया था और सीतलवाड़ तथा राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर.बी. श्रीकुमार को गिरफ्तार कर लिया था.
शीर्ष अदालत ने पिछले महीने 2002 के दंगा मामले में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखा था तथा दंगों में मारे गए कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका को खारिज कर दिया था.
न्यायालय ने मामले को आगे बढ़ाने वाली सीतलवाड़ और गुजरात के संबंधित अधिकारियों को फटकार लगाई थी. अदालत ने किसी गुप्त उद्देश्य के लिए मामले को जारी रखने की गलत मंशा का जिक्र करते हुए कहा था कि जो प्रक्रिया का इस तरह से गलत इस्तेमाल करते हैं, उन्हें कठघरे में खड़ा करके उनके खिलाफ कानून के दायरे में कार्रवाई की जानी चाहिए.
इस पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं ने खुद को कानून का पालन करने वाले ऐसे नागरिक के रूप में र्विणत किया, जो कानूनी प्रणाली में विश्वास रखते हैं. उन्होंने कहा कि उनका आग्रह है कि शीर्ष अदालत को इस मामले में अपनी किसी भी टिप्पणी को नहीं हटाना चाहिए और न ही “ऐसे संस्थागत व्यवधानों की रणनीति” से भयभीत होना चाहिए.
बयान में कहा गया कि अदालत को कानून को अपना काम करने देना चाहिए और न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास बरकरार रखना सुनिश्चित करके इसकी गरिमा को बनाए रखना चाहिए. समूह ने कहा कि आरोपी हमेशा कानून और संविधान के प्रावधानों का सहारा ले सकते हैं.
बयान में कहा गया, “देश में मजबूत न्यायिक व्यवस्था को देखते हुए किसी के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं है. खुद कानून की प्रक्रिया का सामना न करके, न तो तीस्ता सीतलवाड़ और न ही आर.बी. श्री कुमार और न ही संजीव भट्ट दूसरों के खिलाफ चयनित तरीके से अदालती कार्यवाही कर सकते हैं.” पूर्व न्यायाधीशों और अधिकारियों के समूह ने उल्लेख किया कि पूरी दुनिया जानती है तथा यह उच्चतम न्यायालय के विभिन्न आदेशों में भी दर्ज किया गया कि सीतलवाड़ के अनुरोध पर अदालत ने एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया.
समूह ने कहा कि एसआईटी के सदस्यों को भी अदालत ने चुना था और इसकी पूरी जांच सीधे न्यायिक निगरानी तथा पर्यवेक्षण के तहत की गई थी. बयान में कहा गया, “यह एसआईटी है जिसने सीतलवाड़ और उनके साथियों को विभिन्न अपराधों में शामिल पाया है. इसलिए, उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में जो कहा है, वह सही कहा है. दुर्भावनापूर्ण अभियोजन और सबूत गढ़ने के लिए जवाबदेही होनी चाहिए.”