परसा कोयला खदान को मंजूरी, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जताया विरोध
रायपुर. छत्तीसगढ़ में कोयला खदानों को मंजूरी को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री के दौरे के बाद राज्य सरकार ने सरगुजा और सूरजपुर जिले में स्थित परसा कोयला खदान परियोजना को अंतिम मंजूरी दे दी है। राज्य सरकार की मंजूरी के बाद राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के लिए 841.538 हेक्टेयर वन भूमि में खनन कार्य का रास्ता खुल गया है।
इधर, छत्तीसगढ़ में पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे लेकर ंिचता जताई है। उन्होंने राज्य सरकार पर जन-विरोध और पर्यावरणीय ंिचताओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है। रायपुर में बुधवार को राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पिछले वर्ष अक्टूबर में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को सरगुजा और सूरजपुर जिले के अंतर्गत परसा ओपनकास्ट कोल माइंिनग प्रोजेक्ट के गैर वानिकी कार्य के लिए मंजूरी दी थी।
अधिकारियों के मुताबिक,केंद्र की अनुमति के बाद राज्य सरकार ने भी परसा कोयला खदान परियोजना के लिए शर्तों के साथ अपनी अंतिम मंजूरी दे दी है। राज्य सरकार के इस फैसले के बाद राज्य में पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि एक दशक के जन-विरोध और पर्यावरणीय ंिचताओं को नजरअंदाज कर फर्जी ग्राम सभा के आधार पर छत्तीसगढ़ सरकार ने हसदेव अरण्य में खनन कार्यों की अनुमति दी है।
‘छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन’ के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा है कि भारी जन-विरोध को नजरअंदाज कर, ग्राम सभा के संवैधानिक अधिकारों को ताक पर रखकर और राहुल गांधी के आश्वासन को दरकिनार कर छत्तीसगढ़ सरकार ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन परियोजनाओं को स्वीकृति दी है।
शुक्ला ने कहा कि जानकारी के अनुसार, छत्तीसगढ़ शासन ने परसा खदान को एक फर्जी ग्राम सभा के आधार पर ही अंतिम मंजूरी दी है। साथ ही परसा ईस्ट केंते बासन खदान के द्वितीय चरण के विस्तार को भी शुरू करने की हरी झंडी दी गई है। उन्होंने कहा कि इन दोनों परियोजनाओं से सैंकड़ों आदिवासी विस्थापित होंगे और 1,70,000 हेक्टेयर घने समृद्ध जंगल का विनाश होगा।
शुक्ला ने कहा कि अक्टूबर 2021 में लोगों ने हसदेव से 300 किलोमीटर की पदयात्रा कर राज्यपाल से मुलाकात कर न्याय मांगा था।
सामाजिक कार्यकर्ता ने सरकार पर आदिवासी समुदाय के लिए बने पेसा एक्ट 1996, वनाधिकार मान्यता कानून 2006 और संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत प्राप्त अधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।
शुक्ला ने बताया कि छत्तीसगढ़ के सरगुजा और कोरबा जिलों में स्थित हसदेव अरण्य को मध्य भारत के सबसे समृद्ध और जैव विविधता से परिपूर्ण वन-क्षेत्रों में गिना जाता है। इसे ‘छत्तीसगढ़ के फेफड़ों’ की संज्ञा दी जाती है। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र को वर्ष 2010 में ‘नो-गो’ क्षेत्र घोषित किया गया था, लेकिन बड़े-पैमाने पर कोयला खदानों का आवंटन किया गया है, जिससे इस संपूर्ण क्षेत्र पर विनाश के बादल लगातार मंडरा रहे हैं।
शुक्ला के मुताबिक, उनके संगठन ने तत्काल दोनों खदानों की अंतिम मंजूरी वापस लेने, फर्जी ग्राम सभा की जांच कर संबधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने और पूरे हसदेव अरण्य क्षेत्र को संरक्षित करने की मांग की है। राज्य के सरगुजा और सुरजपुर जिले में आवंटित कोयला खदानों की अंतिम मंजूरी के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने अधिकारियों के साथ पिछले माह छत्तीसगढ़ का दौरा किया था और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की थी।
गहलोत ने इस दौरान संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा था कि अगर छत्तीसगढ़ राजस्थान की मदद नहीं करता है तो पूरे राजस्थान में ब्लैक आउट हो जाएगा। राज्य के अधिकारियों के अनुसार, वर्ष 2007 में आवंटित परसा पूर्व और केंते बासन ब्लॉक में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड ने वर्ष 2013 में 762 हेक्टेयर भूमि में पहले चरण का खनन शुरू किया था। दो अन्य ब्लॉक परसा और केंते एक्सटेंशन ब्लॉक वर्ष 2015 में आवंटित किए गए थे।
अधिकारियों ने बताया कि राजस्थान सरकार को परसा पूर्व और केंते बासन के दूसरे चरण तथा नए परसा ब्लॉक के लिए केंद्र सरकार से वन मंजूरी मिली थी। छत्तीसगढ़ सरकार इस संबंध में आगे की कार्यवाही पर विचार कर रही थी। उन्होंने बताया कि परसा पूर्व और केंते बासन (पीईकेबी) के दूसरे चरण को अंतिम मंजूरी पिछले महीने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के बाद दी गई थी। राज्य सरकार ने इस महीने परसा ओपनकास्ट कोल माइंिनग प्रोजेक्ट को भी अंतिम मंजूरी दे दी है।