न्यायालय ने छत्तीसगढ़ में कोयला ब्लॉक आवंटन से जुड़ी याचिकाओं पर केंद्र को हलफनामा दाखिल करने कहा

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने छत्तीसगढ़ में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को कोयला ब्लॉक आवंटन और अडाणी एंटरप्राइज लिमिटेड (एईएल) के खनन कार्यों से संबंधित याचिकाओं पर केंद्र को एक व्यापक हलफनामा सौंपने का बृहस्पतिवार को निर्देश दिया.

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा, ‘‘जो कुछ हुआ है, उस पर हम केंद्र सरकार से एक व्यापक बयान चाहते हैं.’’ पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हम केंद्र सरकार को निर्देश देते हैं कि वह सभी विषयों की स्थिति बताते हुए व्यापक हलफनामा दाखिल करे. दो सप्ताह के भीतर यह होना चाहिए.’’ पीठ ने मामले में उसे एक अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल को पर्यावरण और वन मंत्रालय की ओर से सहयोग करने के लिए कहा.

शीर्ष अदालत छत्तीसगढ़ के दिनेश कुमार सोनी नाम के व्यक्ति द्वारा दायर एक जनहित याचिका समेत तीन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई पर्यावरण मंजूरी का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए आरआरवीयूएनएल को कोयला ब्लॉक आवंटन रद्द करने और एईएल के खनन कार्यों पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है.

दो अन्य याचिकाएं क्रमश: आरआरवीयूएनएल और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति तथा अन्य द्वारा दायर की गई हैं. फरवरी में, आरआरवीयूएनएल की ओर से न्यायालय में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने शीर्ष अदालत को बताया था कि कोयले का खनन कार्य रोक दिया गया है और पूरा विषय रूका हुआ है तथा इसलिए मामले की सुनवाई की जरूरत है.

पिछले साल 15 जुलाई को वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तत्काल सुनवाई के लिए सोनी की जनहित याचिका का उल्लेख किया था, जिस पर तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने विचार किया था. भूषण ने कहा था कि शीर्ष अदालत ने अप्रैल 2019 में जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया था और उसके बाद इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया है. जनहित याचिका में कोयला ब्लॉक आवंटन की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

सोनी ने आरआरवीयूएनएल को एईएल और पारसा केंटे कोलियरीज लिमिटेड (पीकेसीएल) के साथ अपने संयुक्त उद्यम और कोयला खनन वितरण समझौते को रद्द करने के लिए एक दिशा-निर्देश देने का भी अनुरोध किया है. पीकेसीएल, आरआरवीयूएनएल और एईएल के बीच एक संयुक्त उद्यम है, जिसमें एईएल बड़ा हितधारक है. पीकेसीएल के ‘शेयरहोंिल्डग पैटर्न’ को चुनौती देते हुए जनहित याचिका में कहा गया है कि संयुक्त उद्यम में आरआरवीयूएनएल की 26 फीसदी और अडाणी की 74 फीसदी हिस्सेदारी है.

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