सूर्य मिशन: वैज्ञानिक सौर टेलीस्कोप बनाने में सफल, ओजोन परत के अध्ययन में मिलेगी मदद

नयी दिल्ली. सूर्य के अध्ययन वाले भारतीय मिशन ‘आदित्य एल1’ का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण ‘सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप’ (एसयूआईटी) तैयार हो गया है और इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को सौंप दिया गया है. इस टेलीस्कोप से सूर्य के मध्य स्तर (फोटोस्फेयर) से होने वाले विकिरण, पराबैगनी किरणों के प्रभाव आदि का अध्ययन किया जायेगा.

‘सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप’ का विकास इंटर-यूनिर्विसटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए) के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किया गया है. आईयूसीएए के वैज्ञानिक एवं एसयूआईटी परियोजना के मुख्य अन्वेषक प्रो. दुर्गेश त्रिपाठी और प्रो. ए एन रामप्रकाश ने ”पीटीआई-भाषा” को बताया, ” इसरो का सूर्य मिशन आदित्य एल1 है जो धरती से सूर्य की तरफ 15 लाख किलोमीटर तक जायेगा और उसका (सूर्य का) अध्ययन करेगा.”

उन्होंने बताया कि सूर्य से काफी मात्रा में पराबैगनी किरणें निकलती है और इस टेलीस्कोप के माध्यम से 2000-4000 एंग्स्ट्राम तरंगदैर्ध्य की पराबैगनी किरणों का अध्ययन किया जायेगा. टेलीस्कोप के विकास के मुख्य उद्देश्य बताते हुए त्रिपाठी ने कहा ”इससे सूर्य के वातावरण का अध्ययन करने में मदद मिलेगी, साथ ही पराबैगनी किरणों का धरती खासकर ओजोन परत पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा सकेगा.” उन्होंने बताया कि इससे पहले दुनिया में इस स्तर पर पराबैगनी किरणों का पहले अध्ययन नहीं किया गया है.

वैज्ञानिकों ने कहा कि आदित्य एल1 मिशन में सात प्रमुख उपकरण हैं जिनमें से एक महत्वपूर्ण उपकरण सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप है जिसका निर्माण आईयूसीएए के नेतृत्व में किया गया है. इसमें इसरो के अलावा भारतीय तारा भौतिक संस्थान, आईआईएसईआर कोलकाता, फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, अहमदाबाद, मणिपाल यूनिर्विसटी ने भी सहयोग किया है. त्रिपाठी और राम प्रकाश ने बताया कि सूर्य की ऊपरी सतह पर कुछ विस्फोट होते रहते हैं लेकिन यह कब होंगे और इनके प्रभाव क्या होंगे, इसकी सटीक जानकारी नहीं है…ऐसे में इस टेलीस्कोप का एक उद्देश्य इनका अध्ययन करना भी है.

उन्होंने बताया, ” इसके लिए हमने कृत्रिम बुद्धिमता का सहारा लिया है जो इसका डाटा (विस्फोटों का) एकत्र करेगा और उसका मूल्यांकन करेगा.” वैज्ञानिकों ने बताया कि वायुमंडल में एक्स रे, पराबैगनी आदि कई तरह की किरणें हैं, ऐसे में टेलीस्कोप के काफी गर्म होने एवं नुकसान पहुंचने की आशंका थी. इस स्थिति में टेलीस्कोप के विकास के प्रारंभिक चरण में हमने एक फिल्टर डिजाइन किया ताकि इसमें जरूरत के मुताबिक ही किरणें जाएं और यह ज्यादा गर्म नहीं हो.

उन्होंने बताया कि इस प्रकार से सूर्य के अध्ययन की दृष्टि से संस्थान के नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हुई है और इस उपकरण को छह जून को इसरो को सौंप दिया गया है. परियोजना के पूरा होने में लगे समय के प्रश्न पर वैज्ञानिकों ने बताया कि इसके लिए सबसे पहले वर्ष 2012 में प्रस्ताव भेजा गया था और विस्तृत समीक्षा एवं मूल्यांकन के बाद इसे 2015 में मंजूरी मिली तथा 2015-16 में काम शुरू हुआ.

उन्होंने टेलीस्कोप से प्राप्त डेटा के बारे में कहा कि इसका उपयोग पूरे देश के वैज्ञानिक सूर्य के बारे में जानकारी को अद्यतन करने में कर सकेंगे. हाल ही में केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने भारत के सूर्य मिशन के बारे में पूछे जाने पर कहा था कि इसकी तैयारी बराबर चल रही है तथा यह अपनी तरह का ऐसा पहला मिशन होगा जिसमें सूर्य के वायुमंडल, उसके वातावरण एवं उससे जुड़े तमाम पहलुओं पर शोध एवं अध्ययन किया जायेगा.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button