भिन्न संपत्ति, विवाह कानून देश की एकता में बाधक : केंद्र ने यूसीसी पर न्यायालय में कहा था
नयी दिल्ली. केंद्र ने समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में दायर अपने हलफनामे में कहा था कि विभिन्न धर्मों एवं संप्रदायों के नागरिक अलग-अगल संपत्ति एवं वैवाहिक कानूनों का पालन करते हैं, जो “राष्ट्र की एकता के लिए बाधक” है. विधि आयोग ने बुधवार को राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर नए सिरे से परामर्श प्रक्रिया की शुरुआत की और सार्वजनिक एवं मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों से अपनी राय देने को कहा.
अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर 13 अक्टूबर, 2022 को दायर हलफनामे में, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने कहा कि अनुच्छेद 44 (यूसीसी) संविधान की प्रस्तावना में निहित “पंथ-निरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य” के उद्देश्य को मजबूत बनाने के लिए है. संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य नीति निर्देशक तत्वों का हिस्सा है और यह प्रावधान करता है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए यूसीसी का प्रयास करेगा. केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि अभिव्यक्ति “समान नागरिक संहिता” विवाह, तलाक, बच्चों की देखभाल का जिम्मा, उत्तराधिकार और गोद लेने आदि से संबंधित व्यक्तिगत कानून को दर्शाती है.
मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि विषय वस्तु के महत्व और इससे जुड़ी संवेदनशीलता को देखते हुए विभिन्न समुदायों से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों (पर्सनल लॉ) के प्रावधानों के गहन अध्ययन की आवश्यकता है और केंद्र ने देश के विधि आयोग से यूसीसी से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर गौर करने और उसके बाद अपनी सिफारिशें करने का अनुरोध किया है. हलफनामे में कहा गया था कि कानून बनाने का संप्रभु अधिकार संसद के पास है और कोई भी बाहरी प्राधिकरण उसे कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता है.
हलफनामे के अनुसार, “यह कानून की स्थापित स्थिति है और फैसलों में कहा गया है कि कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था के तहत, संसद के पास कानून बनाने की संप्रभु शक्ति है और कोई भी बाहरी शक्ति या प्राधिकरण कोई कानून बनाने के लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता है.” सरकार ने कहा था कि उपाध्याय की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है और केंद्र के अनुरोध के बाद, 21वें विधि आयोग ने मामले के विभिन्न पहलुओं पर गौर किया और उसे विभिन्न हितधारकों से कई ज्ञापन मिले हैं और विस्तृत शोध के बाद इस मामले पर व्यापक चर्चा के लिए उसने अपनी वेबसाइट पर 31 अगस्त, 2018 को ”परिवार कानून में सुधार” शीर्षक से एक परामर्श पत्र अपलोड किया था.
उसने कहा था कि 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया और 22वें विधि आयोग का गठन किया गया है. इसके साथ ही सरकार ने कहा था कि जब भी इस मामले में विधि आयोग की रिपोर्ट मिलती है, वह मामले से संबद्ध विभिन्न हितधारकों के परामर्श से इस पर गौर करेगी.
आयोग ने बुधवार को एक सार्वजनिक नोटिस में कहा, “चूंकि उक्त परामर्श पत्र तीन साल से भी पहले जारी हुआ था, ऐसे में विषय की प्रासंगिकता और महत्व को ध्यान में रखते हुए और इस विषय पर विभिन्न अदालती आदेशों पर भी गौर करते हुए, भारत के 22वें विधि आयोग ने इस विषय पर नए सिरे से विचार-विमर्श करना उचित समझा.” उल्लेखनीय है कि 22वें विधि आयोग को हाल ही में तीन साल का विस्तार मिला था और उसने जून 2016 में विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा भेजे गए संदर्भ पर यूसीसी से जुड़े मुद्दों पर विचार शुरू कर दिया है.