राज्यों को लोकलुभावन योजनाओं पर खर्च कम करना होगा, तय करनी होगी प्राथमिकता
मुंबई. देश में कई राज्य किसान कर्ज माफी जैसी लोकलुभावन योजनाओं पर बहुत अधिक राशि खर्च कर रहे हैं. वहीं केंद्र से राज्यों को मिलने वाला माल एवं सेवा कर (जीएसटी) मुआवजा आगामी जून में बंद होने जा रहा है, ऐसे में राज्यों को राजस्व प्राप्ति के अनुरूप अपने खर्चों में प्राथमिकता फिर से तय करनी होगी. एक रिपोर्ट में सोमवार को यह कहा गया.
भारतीय स्टेट बैंक में समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्या कांति घोष की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ मामलों में तो केंद्र की ओर से माल एवं सेवा कर राजस्व, राज्य के कर राजस्व के पांचवे हिस्से से कुछ अधिक है. रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य ऐसी मुफ्त योजनाओं पर खर्च कर रहे हैं जो आर्थिक रूप से वहनीय नहीं हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, तेलंगाना राजस्व प्राप्ति में से 35 प्रतिशत हिस्से को लोकलुभावन योजनाओं पर खर्च करेगा. वहीं राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और केरल का ऐसी योजनाओं पर पांच से 19 फीसदी खर्च करने का विचार है. राज्यों के अपने कर राजस्व के लिहाज से देखा जाए, तो कुछ प्रदेशों में तो ऐसी योजनाओं पर 63 प्रतिशत खर्च करने की तैयारी है.
घोष ने कहा, ‘‘साफ है कि राज्य अभी अपना पैर चादर से बाहर निकाल रहे हैं और यह अत्यंत जरूरी हो जाता है कि वे अपने खर्च की प्राथमिकताओं को राजस्व प्राप्तियों के हिसाब से तय करें.’’ इस बीच, कुछ राज्यों ने जीएसटी मुआवजा योजना की अवधि और पांच साल के लिए बढ़ाने की मांग की है.
रिपोर्ट में कहा गया कि वैश्विक महामारी के कारण राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब हुई है. 18 राज्यों के बजट के आकलन में पता चला कि राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के प्रतिशत के रूप में औसत राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2021-2022 में 0.50 प्रतिशत बढ़कर चार प्रतिशत से अधिक हो गया है.
छह राज्यों में राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के चार फीसदी से अधिक हो गया, सात राज्यों ने अपने बजट लक्ष्य को लांघा, जबकि 11 राज्य बीते वित्त वर्ष में अपने राजकोषीय घाटे को बजटीय आंकड़ों के बराबर या उससे कम रखने में सफल रहे. वृद्धि के परिदृश्य के लिहाज से रिपोर्ट में कहा गया कि आंध्र प्रदेश, असम, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल की वास्तविक जीएसडीपी वृद्धि देश की कुल जीडीपी वृद्धि से कहीं अधिक रही.