उम्मीद है विपक्ष की बैठक में कांग्रेस अध्यादेश पर रुख स्पष्ट करेगी: केजरीवाल
नयी दिल्ली. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को उम्मीद जतायी कि कांग्रेस पटना में 23 जून को होने वाली गैर-भाजपा दलों की बैठक में राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र के अध्यादेश पर अपना रुख स्पष्ट करेगी. बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मुकाबला करने के लिए संयुक्त रणनीति बनाने के वास्ते विपक्षी दलों की शुक्रवार को एक बैठक बुलाई है.
आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वह बैठक में अन्य नेताओं से इस बारे में बात करेंगे कि पूर्ण राज्यों के लिए भी इस तरह का अध्यादेश कैसे लाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि वह ”इस अध्यादेश के खतरों को वहां मौजूद प्रत्येक दल को समझाएंगे.” उन्होंने कहा, ”मैं भारत के संविधान को अपने साथ ले जाऊंगा और समझाऊंगा कि यह अध्यादेश कैसे उसका मखौल उड़ाता है. केवल इसलिए कि इस अध्यादेश को केवल दिल्ली में जारी किया गया है, जिसे अक्सर ”आधा राज्य” माना जाता है, इसका यह मतलब नहीं कि इसे तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल में नहीं लाया जा सकता.”
उन्होंने कहा, ”इस तरह के अध्यादेशों को लागू करके, केंद्र भारत के संविधान की समवर्ती सूची में आने वाले शिक्षा, बिजली जैसे सभी मामलों को खत्म कर सकता है.” केजरीवाल ने कहा, ”मुझे उम्मीद है कि कांग्रेस अपना रुख स्पष्ट करेगी, क्योंकि उस बैठक में अन्य सभी राजनीतिक दल कांग्रेस से उसका रुख पूछेंगे. अध्यादेश पहला मुद्दा होगा, जिस पर बैठक में चर्चा की जाएगी.”
केंद्र ने गत 19 मई को दिल्ली में ‘ग्रुप ए’ अधिकारियों के तबादले और तैनाती के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने के लिए एक अध्यादेश जारी किया था, जिसे आप सरकार ने सेवाओं के नियंत्रण पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के साथ धोखा बताया था.
यह अध्यादेश उच्चतम न्यायालय द्वारा दिल्ली में निर्वाचित सरकार को पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित मामलों को छोड़कर अन्य मामलों का नियंत्रण सौंपने के बाद लाया गया था. शीर्ष अदालत के 11 मई के फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती उप राज्यपाल के कार्यकारी नियंत्रण में थी. अध्यादेश के बाद, केजरीवाल अध्यादेश के खिलाफ समर्थन हासिल करने के लिए गैर-भाजपा दलों के नेताओं से सम्पर्क कर रहे हैं, ताकि केंद्र द्वारा इस संबंध में संसद में विधेयक लाये जाने की स्थिति में वह पारित नहीं हो सके.