केंद्रीय बलों की तैनाती के आदेश के खिलाफ याचिकाएं शीर्ष अदालत में खारिज, ममता सरकार को झटका

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि चुनाव कराना ‘हिंसा का लाइसेंस’ नहीं हो सकता और इसने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें पश्चिम बंगाल में राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) को आठ जुलाई को होने वाले पंचायत चुनावों के लिए केंद्रीय बलों की मांग करने और तैनात करने का निर्देश गया था.
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश का आशय अंतत? राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना था.

पश्चिम बंगाल हमेशा चुनाव के दौरान राजनीतिक हिंसा का गढ. बन जाता है. वर्ष 2018 में हुए पंचायत चुनावों में 20 से अधिक लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे. आठ जुलाई को प्रस्तावित पंचायत चुनावों की पृष्ठभूमि में हुए संघर्षों में कई लोगों के मारे जाने की सूचना मिली है, जिनमें से कुछ लोग नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन 15 जून को मारे गये, जिसके कारण कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राज्य भर में केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया था.

गौरतलब है कि 61,000 से अधिक मतदान केंद्रों पर मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. इनमें से कई मतदान केंद्र  संवेदनशील क्षेत्रों में हैं. न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अवकाशकालीन पीठ ने राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार को गहरा झटका देते हुए कहा, ”चुनाव कराना हिंसा का लाइसेंस नहीं हो सकता. चुनाव के साथ हिंसा नहीं हो सकती है.” खंडपीठ ने कहा कि यह सच है कि उच्च न्यायालय के आदेश का आशय राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना है, क्योंकि यहां एक ही दिन में पंचायत चुनाव हो रहे हैं.

न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और शीर्ष अदालत इस संबंध में उच्च न्यायालय द्वारा जारी किसी अन्य निर्देश में हस्तक्षेप करने की इच्छुक नहीं है. पीठ ने कहा कि राज्य और एसईसी का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं ने दलील दी है कि पश्चिम बंगाल के सभी जिलों के लिए केंद्रीय बलों की मांग और तैनाती के लिए उच्च न्यायालय के निर्देश में शीर्ष अदालत को हस्तक्षेप करना चाहिए.

एसईसी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि एसईसी उच्च न्यायालय के दो अलग दिशानिर्देशों से असंतुष्ट है, जिसमें से एक है कि उसे चुनाव कराने के लिए केंद्रीय बलों की मांग करना है और उसकी तैनाती करनी है, जबकि बलों की मांग करना और उन्हें तैनात करना आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं है. सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि चुनाव के साथ हिंसा नहीं हो सकती.

न्यायालय ने कहा, ”अगर लोग जाकर अपना नामांकन पत्र दाखिल नहीं कर पा रहे हैं या जिन लोगों ने अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है, उन्हें अंतत: खत्म कर दिया गया है या समूह संघर्ष हो रहे हैं, तो फिर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कहां रहा.” राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि कभी-कभी तथ्य और आंकड़े धारणाओं से अलग होते हैं.

पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार के वकील से कहा कि खुद राज्य सरकार के आंकड़ें यह बताते हैं कि स्थिति से निपटने के लिए अपर्याप्त पुलिस बल है और इसलिए, उसने आधा दर्जन राज्यों से पुलिस बल मंगवाया है. न्यायालय ने कहा, ”उच्च न्यायालय ने सोचा है कि आधा दर्जन राज्यों से पुलिस बलों को बुलाने के बजाय क्यों न केंद्रीय बलों को बुलाने दिया जाए.” शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा बलों के बीच समन्वय होना चाहिए.

इसने कहा कि उच्च न्यायालय ने पिछली घटनों के परिप्रेक्ष्य में अपने समक्ष दायर याचिकाओं का निपटारा किया और निर्देश जारी किये. उच्च न्यायालय ने 15 जून को राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि पंचायत चुनाव के लिए पूरे पश्चिम बंगाल में 48 घंटे के अंदर केंद्रीय बलों की मांग की जाए और उन्हें तैनात किया जाए. अदालत ने कहा था कि उसने चुनावी प्रक्रिया के लिए 13 जून को संवेदनशील क्षेत्रों में केंद्रीय बलों को तैनात करने का आदेश दिया था, लेकिन तभी से कोई उपयुक्त कदम नहीं उठाया गया.

उच्च न्यायालय ने भारतीय जनता पार्टी के नेता शुभेंदु अधिकारी और कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी की याचिकाओं पर राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि राज्य के उन सभी जिलों में केंद्रीय बलों को तैनात करने की मांग की जाए, जहां आठ जुलाई को होने वाले पंचायत चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने के दौरान हिंसा देखी गयी.

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