आपातकाल इतिहास का वह कालखंड, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता : प्रधानमंत्री मोदी

नयी दिल्ली/लखनऊ. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने 1975 के आपातकाल की बरसी पर रविवार को कांग्रेस पर निशाना साधा, जो नरेन्द्र मोदी नीत सरकार पर देश में असहमति को दबाने, लोकतंत्र का गला घोंटने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का आरोप लगा रही है.

गौरतलब है कि 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की गई थी और उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. आपातकाल के दौरान लोगों के मौलिक अधिकारों को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया और प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. 21 महीने बाद आपातकाल को हटाया गया.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक ट्वीट में कहा, ”मैं उन सभी साहसी लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया और हमारी लोकतांत्रिक भावना को मजबूत करने के लिए काम किया. आपातकाल के काले दिन हमारे इतिहास का वह कालखंड हैं, जिसे भुलाया नहीं जा सकता है. यह हमारे संवैधानिक मूल्यों के बिल्कुल विपरीत था.” केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि अपने सत्ता-स्वार्थ के लिए लगाया गया आपातकाल, कांग्रेस की तानाशाही मानसिकता का प्रतीक और कभी न मिटने वाला कलंक है.

उन्होंने ट्वीट किया, ”आज ही के दिन 1975 में एक परिवार ने अपने हाथ से सत्ता निकलने के डर से जनता के अधिकारों को छीन कर व लोकतंत्र की हत्या कर देश पर आपातकाल थोपा था. उस कठिन समय में अनेक यातनाएं सहकर लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए लाखों लोगों ने संघर्ष किया. मैं उन सभी देशभक्तों को दिल से नमन करता हूं.” विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि आपातकाल के दिन उनकी पीढ.ी के लिए ”निर्णायक राजनीतिक अनुभव” और ”जीवन भर का सबक” थे.

जयशंकर ने ट्वीट किया, ”आपातकाल की घोषणा की बरसी पर, उन काले दिनों को याद करें और कैसे देश ने इस चुनौती पर काबू पाया. यह मेरी पीढ.ी का निर्णायक राजनीतिक अनुभव और हमारे लोकतांत्रिक ताने-बाने को मजबूत करने के लिए एक आजीवन सबक था.” केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आपातकाल के दौरान प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के खिलाफ संघर्ष के बारे में याद दिलाने के लिए अखबार की कतरनों के साथ ट्वीट किया.

उन्होंने ट्वीट में कहा, ”मीडिया ने आपातकाल के तहत अभिव्यक्ति की आजादी और प्रेस की आजादी पर रोक लगाने का विरोध किया. सत्ता की भूखी कांग्रेस ने मीडिया का मुंह बंद कर दिया, पूरे विपक्ष को जेल में डाल दिया और संविधान में एकतरफा संशोधन किया.” सीतारमण ने कहा, कांग्रेस वंशवाद की सेवा करती है, भारत के लोगों की नहीं.

भाजपा प्रमुख जे पी नड्डा ने कहा कि कांग्रेस की निर्दयता ने सैकड़ों वर्षों के विदेशी शासन के अत्याचार को भी पीछे छोड़ दिया था. उन्होंने ट्वीट किया, ”25 जून 1975 को एक परिवार ने अपनी तानाशाही प्रवृत्ति के कारण देश के महान लोकतंत्र की हत्या कर आपातकाल जैसा कलंक थोपा था. ऐसे कठिन समय में असीम यातनाएं सहकर लोकतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष करने वाले सभी राष्ट्र भक्तों को नमन करता हूं.”

आपातकाल के दौरान तानाशाही का विरोध करने वालों को नमन : योगी
उत्तर प्रदेश के मुख्­यमंत्री योगी आदित्­यनाथ ने रविवार को आपातकाल की बरसी पर भारत के महान लोकतंत्र को अक्षुण्ण रखने के लिए बिना डरे क्रूर तानाशाही का मुखर विरोध करने वाले लोगों को नमन किया. वहीं, उपमुख्­यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कांग्रेस पर जमकर हमला किया, जबकि ब्रजेश पाठक ने आपातकाल के विरोध में उठी हर आवाज को नमन किया.

आपातकाल की बरसी पर योगी ने ट्वीट किया, ह्लभारत के महान लोकतंत्र को अक्षुण्ण रखने के लिए बिना डरे, बिना डिगे, बिना झुके क्रूर तानाशाही का प्रखर प्रतिकार करने वाले समस्त हुतात्माओं को नमन.ह्व इस ट्वीट के साथ योगी ने एक तस्वीर साझा की, जिसमें ’25 जून 1975 : आपातकाल एक कलंक’ पंक्ति को प्रमुखता से उभारा गया है.

वहीं, मौर्य ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए ट्विटर पर लिखा, “कांग्रेस का मतलब आपातकाल, भाजपा का मतलब अमृतकाल! कांग्रेस को तानाशाही में, भाजपा को लोकतंत्रशाही में विश्वास.ह्व एक अन्य ट्वीट में मौर्य ने कहा, ह्लकांग्रेस के डीएनए में लोकतंत्र नहीं तानाशाही है! ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ देश और लोकतंत्र के लिए जूरूरी है.” उपमुख्­यमंत्री ब्रजेश पाठक ने ट्वीट किया, ह्लभारतीय लोकतंत्र और राजनीति के सबसे काले अध्याय 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल के विरोध में उठी हर आवाज को सादर नमन.ह्व गौरतलब है कि 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की गई थी और उस समय केंद्र में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी. आपातकाल को 21 मार्च 1977 को हटा लिया गया था.

आपातकाल के दौरान जेल गए ‘लोकतंत्र सेनानियों’ ने ‘डर और अनिश्चितता’ के दिनों को याद किया
लगभग 50 साल बीते चुके हैं, लेकिन लखनऊ निवासी तेज नारायण गुप्ता को 26 जून 1975 की वह काली रात आज भी याद है, जब पुलिस ने उनके दरवाजे पर दस्तक दी और उन्हें अपने साथ उठा ले गई. भारत में आपातकाल लागू किए जाने के एक दिन बाद 26 जून 1975 को देशव्यापी छापे शुरू कर दिए गए थे, जिसके तहत विपक्ष के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को सलाखों के पीछे डाल दिया गया था.

कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता तेज नारायण गुप्ता बताते हैं, “रात नौ बजे के आसपास मैं घर लौटा ही था कि एक पुलिस दल ने मेरे घर पर छापा मारा और मुझे गिरफ्तार करके साथ ले गया.” गुप्ता के मुताबिक, एक पुलिसकर्मी उन्हें साइकिल के डंडे पर बैठाकर बाजार थाने ले गया, जो उनके घर से दो किलोमीटर दूर है. गुप्ता ने बताया कि इसके बाद उन्हें कैसरबाग थाने ले जाया गया और फिर अंतत: लखनऊ जिला जेल में अन्य बंदियों के साथ कैद कर दिया गया.

गुप्ता (83) ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “पुलिसकर्मी एक मजदूर से ली गई साइकिल पर बैठाकर मुझे थाने ले गया. मुझे साइकिल की रॉड पर बैठाया गया था. वह साइकिल बहुत धीमी गति से चला रहा था. इसका मकसद मेरे इलाके के लोगों के मन में खौफ पैदा करना था.” आपातकाल लागू किए जाने के फैसले की तुलना डकैती से करते हुए गुप्ता ने कहा, “डकैती को आमतौर पर आधी रात के आसपास अंजाम दिया जाता है. इसी तरह, देश में लोकतंत्र की डकैती भी आधी रात के आसपास हुई थी.”

भारत में 25 जून 1975 की रात को आपातकाल लगाने की घोषणा की गई थी, जिसके तहत नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया गया था और प्रेस पर कई प्रतिबंध लागू किए गए थे. उस समय केंद्र में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी. आपातकाल को 21 मार्च 1977 को हटा लिया गया था.

गुप्ता कहते हैं, “जेल में हमारे मन में भविष्य को लेकर बहुत अनिश्चितता थी. हम बस यही सोचते रहते थे कि हम कभी जेल से बाहर आ पाएंगे या नहीं.” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 18 जून को अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में आपातकाल को भारतीय इतिहास का ‘काला दौर’ बताया था और कहा था कि उस समय लोकतंत्र का समर्थन करने वालों को प्रताड़ित किया गया था.
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक पेंशन विभाग के अनुसार, आपातकाल के दौरान राज्य में गिरफ्तार किए गए लोगों में से 4,755 आज भी जीवित हैं. उन्हें अब ‘लोकतंत्र सेनानी’ कहा जाता है.

लोकतंत्र सेनानियों में 83 वर्षीय रामदीन और 74 साल के केदार नाथ श्रीवास्तव भी शामिल हैं. रामदीन कहते हैं, “आपातकाल के दौरान लोगों के मन में डर और अनिश्चितता का माहौल व्याप्त हो गया था… जबरन नसबंदी के कारण लोग बाद के आम चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ हो गए थे.” वहीं, श्रीवास्तव ने बताया, “गिरफ्तारी के बाद हममें से ज्यादातर लोग यही सोचते रहते थे कि क्या हमारी बाकी की जिंदगी सलाखों के पीछे ही गुजरेगी.” उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने भी आपातकाल के दौरान जेल में बिताई गई अवधि को याद किया.

उन्होंने कहा, “मैं उन्नाव जेल में कैद था…संसदीय चुनावों की घोषणा हो गई थी और हमें उम्मीद थी कि कांग्रेस और इंदिरा गांधी हार जाएंगी. मतगणना की रात, मैं किसी तरह एक रेडियो हासिल करने में कामयाब रहा और उस पर नतीजों की घोषणा सुनने लगा.” उस समय जन संघ के नेता रहे दीक्षित ने बताया, “देर रात डिप्टी जेलर आए और कहा कि ‘अगर ट्रांजिस्टर मिला, तो डंडा कर दूंगा.’ तड़के चार बजे के आसपास हमें खबर मिली कि इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गई हैं. वही डिप्टी जेलर दौड़कर मेरी बैरक की तरफ दौड़ते हुए आए और बोले ‘बधाई हो सर.’ जब मैंने पूछा कि आपके सुर इतनी जल्दी कैसे बदल गए, तो उन्होंने कहा कि आप सरकार बनाने जा रहे हैं.”

दीक्षित (76) ने कहा कि आंतरिक अशांति के नाम पर आपातकाल लगाया गया था, जबकि ऐसा कुछ नहीं था. उन्होंने कहा, “यह (आपातकाल) एक ऐसी स्थिति थी, जिसके लिए देश तैयार नहीं था. देश में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. नयी पीढ.ी को इसके बारे में पता होना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई शासक इस तरह का कृत्य करने का दुस्साहस न कर सके.” सिद्धार्थनगर जिले के इटवा से समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ विधायक माता प्रसाद पांडेय ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि आपातकाल के दिनों में ‘डर और अनिश्चितता’ का माहौल था.

उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष पांडेय को बस्ती जेल में कैद किया गया था. आपातकाल के दौरान चलाए गए नसबंदी अभियान के बारे में बताते हुए 70 वर्षीय पांडेय ने कहा, “पुलिस लोगों को परेशान करती थी. लोग पेड़ों के ऊपर या गन्ने के खेतों में छिपते फिरते थे. उन दिनों कुछ इस तरह का भय का माहौल था.” उन्होंने कहा, “हालांकि, उस समय सिर्फ नेताओं को गिरफ्तार किया जाता था और उनके परिवार के सदस्यों को परेशान नहीं किया जाता था.”

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