बस्तर में आईईडी हमले को नाकाम करना नक्सल विरोधी अभियान की आखिरी अहम चुनौती

नयी दिल्ली. छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में बुधवार को नक्सलियों द्वारा किए गए हमले ने सुरक्षाबलों के लिए नक्सल विरोधी अभियानों में इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) को समय रहते नाकाम करने को आखिरी सबसे अहम चुनौती के तौर पर रेखांकित किया है. सुरक्षा अधिकारियों ने आईईडी का पता लगाने की सटीक प्रौद्योगिकी की कमी और नक्सलियों की हाताशा का हवाला देते हुए कहा कि वे(नक्सली) सुरक्षा बलों से सीधी लड़ाई से बच रहे हैं जो राज्य में वामपंथी उग्रवाद के खात्मे के लिए तैनात है.

उल्लेखनीय है कि बुधवार को नक्सलियों ने गत दो साल में सुरक्षाबलों पर सबसे बड़ा हमला किया. इस हमले में जिला रिजर्व गार्ड(डीआरजी) के 10 जवान बलिदान हो गए हैं तथा एक वाहन चालक की भी मृत्यु हो गई. सुरक्षाबल के जवान जब अभियान के बाद एक वाहन (छोटा मालवाहक वाहन) से लौट रहे थे तब नक्सलियों ने अरनपुर और समेली गांव के मध्य शक्तिशाली बारूदी सुरंग विस्फोट कर दिया.

छत्तीसगढ़, तेलंगाना और ओडिशा की सीमाओं के नजदीक स्थित दक्षिण बस्तर क्षेत्र में सुकमा के दक्षिणी इलाके में सबसे अधिक नक्सली हमले की घटनाएं हुईं हैं जिनमें वर्ष 2010 के दौरान दंतेवाड़ा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) पर किया गया हमला शामिल है जिसमें बल के 75 जवान बलिदान हो गए थे. सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि दक्षिणी छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती इलाकों में नक्सलियों द्वारा आईईडी छिपाना और उनमें विस्फोट करना उनके समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है.

एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने दिल्ली में ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘सुरक्षा एजेंसियों को आमतौर पर सतर्क करते हुए बताया जाता है कि नक्सल प्रायोजित टीसीओसी अवधि चल रही है और इसलिए अभियान और प्रशासनिक कार्य करने के दौरान सतर्क रहें.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ दुर्भाग्य से नक्सली दंतेवाड़ा में डीआरजी के वाहन को अपने जाल में फंसाने में सफल रहे. घटना के वास्तविक कारणों की जांच की जा रही है.’’ गौरतलब है कि टीसीओसी मार्च से जून के महीने में माओवादियों द्वारा चलाया जाने वाला सशस्त्र अभियान है जिसे वे अपना काडर विस्तार करने और सुरक्षा बलों पर हमला करने के लिए चलाते हैं. इस अवधि में नक्सलियों के सक्रिय होने की वजह वन में पतझड़ का मौसम होना और दृश्यता बढ़ना है.

बस्तर में तैनात एक अन्य अधिकारी ने बताया कि इन इलाकों को माओवादियों की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी नियंत्रित करती है जिसका नेतृत्व भगोड़ा हिडमा कर रहा है. पुलिस का आरोप है कि हिडमा ने गत दो दशक में सैकड़ों हमलों की साजिश रची है और अंजाम दिया है. उन्होंने बताया कि सुरक्षा बल सुदूर आधार और सड़क बनाकर ‘‘इलाकों को अपने नियंत्रण में रखने की’’ कोशिश कर रहे हैं. सीआरपीएफ ने छत्तीसगढ़ में गत तीन साल में 15 अग्रिम अभियान आधार बनाए हैं.

अधिकारी ने बताया कि दूरदराज के इलाके होने, घने जंगल और कमजोर मोबाइल फोन संपर्क अन्य बाधाएं हैं जिनका सामना सुरक्षा बलों और सरकारी एजेंसियों को इन इलाकों में अभियान के दौरान करना पड़ता है. सीआरपीएफ के एक अधिकारी ने बताया कि आईईडी दो कारणों से आगे भी बड़ी समस्या बनी रहेगी. पहला, माओवादियों के पास आधुनिक बंदूक, राइफल और गोला-बारूद खत्म हो गए हैं,इसलिए वे आमने सामने की लड़ाई करने की बजाय औचक हमला कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि वे हमेशा सफल नहीं होते हैं क्योंकि सुरक्षा बलों ने उनकी चाल समझ ली है लेकिन जब भी वे सफल होते हैं कई सुरक्षा कर्मी या तो शहीद हो जाते हैं या घायल हो जाते हैं. अधिकारी ने कहा, ‘‘दूसरा कारण यह है कि बारूदी सुरंग का पता लगाने की सटीक प्रौद्योगिकी नहीं है, वे सड़क पर गड्ढा खोदकर या पुल आदि के नीचे इसे छिपा देते हैं और जैसे ही सुरक्षाबलों के वाहन गुजरते हैं, दूर बैठा व्यक्ति उसमें धमाका कर देता है.’’ उन्होंने बताया कि कई आईईडी में सैनिकों के पैर पड़ने से भी धमाका हो जाता है और ऐसी ही घटनाओं में गत दो साल में 100 से अधिक सुरक्षाकर्मी घायल हुए हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button