विवादों में घिरी असम की राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म ‘सेमखोर’

गुवाहाटी/हाफलोंग. असम की राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म ‘सेमखोर’ विवादों में घिर गई है. दिमासा समुदाय के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि इस फिल्म में उनकी संस्कृति को गलत तरीके से चित्रित किया गया है, और इसका उद्देश्य ‘‘भावनाएं आहत करना’’ है.
समुदाय के एक नेता ने फिल्म निर्माता एमी बरुआ के खिलाफ हाफलोंग थाने में शिकायत दर्ज कराई है, जबकि कई स्थानीय संगठनों ने फिल्म की ंिनदा करते हुए बयान जारी किए हैं.

फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाली बरुआ ने कहा कि उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि यह एक काल्पनिक काम है. ‘सेमखोर’ इसी नाम के एक गांव पर आधारित फिल्म है. यह दिमासा-भाषा की पहली फिल्म है. दिमासा जनजाति की एक महिला के जीवन को दर्शाने वाली इस फिल्म को 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में ‘रजत कमल’ से सम्मानित किया गया है. वहीं बरुआ को ‘स्पेशल ज्यूरी मेन्शन’ पुरस्कार से नवाजा गया है.

विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रशंसा पाने के बाद फिल्म को पिछले सप्ताह रिलीज किया गया था. ‘आॅल दिमासा स्टूडेंट्स यूनियन’ के पूर्व अध्यक्ष महेंद्र केम्पराय ने हाल ही में दाखिल शिकायत में कहा कि एक ओर जहां समुदाय बड़े पर्दे पर खुद को दिखाए जाने का स्वागत करता है, वहीं दूसरी ओर इसका ‘‘गलत चित्रण’’ ंिचता का विषय है.

उन्होंने दावा किया कि समुदाय में कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा नहीं है, जैसा कि फिल्म में दर्शाया गया है. साथ ही फिल्म में दिमासा समुदाय की खराब छवि पेश की गई है. पूर्व छात्र नेता ने मांग की कि सामुदायिक विशेषज्ञों से परामर्श के बाद फिल्म से ‘‘आपत्तिजनक दृश्यों को हटाया जाए’’. ‘दिमासा मदर्स एसोसिएशन’ ने भी एक प्रेस बयान में फिल्म की ंिनदा करते हुए दावा किया कि समुदाय में कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा दिखाना ‘‘तथ्यात्मक रूप से गलत’’ और ‘‘अन्यायपूर्ण’’ है.

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