महिला अंडर-19 विश्व कप: विजेताओं को जानिए
नयी दिल्ली/लखनऊ/पोशेफ्स्ट्रूम. वे अब किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. क्रिकेट के दीवाने देश भारत में भी हालांकि महिला क्रिकेट में अंडर-19 विश्व कप के रूप में देश का पहला आईसीसी खिताब जीतने से पहले बहुत कम लोगों ने ही इन खिलाड़ियों के बारे में सुना था. ये खिलाड़ी कौन हैं. पीटीआई भाषा आपको पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी दे रहा है.
शेफाली वर्मा, कप्तान, सलामी बल्लेबाज: रोहतक की रहने वाली अंडर-19 टीम की यह कप्तान टीम की सबसे र्चिचत खिलाड़ी हैं जो सीनियर स्तर पर पहले ही तीन विश्व कप फाइनल खेल चुकी है. नवंबर 2019 में 15 साल 285 दिन की उम्र में वह अपने आदर्श सचिन तेंदुलकर को पछाड़कर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अर्धशतक जड़ने वाली सबसे युवा खिलाड़ बनीं.
श्वेता सहरावत, सलामी बल्लेबाज: दक्षिण दिल्ली की यह लड़की वॉलीबॉल, बैडंिमटन और स्केंिटग में हाथ आजमाने के बाद क्रिकेट से जुड़ी. खिताबी मुकाबले में 69 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए जल्दी पवेलियन लौटी लेकिन टीम के फाइनल के सफर में उनकी भूमिका अहम रही. वह सात पारियों में 99.00 की औसत और लगभग 140 के स्ट्राइक रेट से 297 रन बनाकर शीर्ष स्कोरर रहीं.
सौम्या तिवारी, उप कप्तान: अपनी मां द्वारा कपड़े धोने के लिए इस्तेमाल होने वाली थापी से क्रिकेट खेलना शुरू करने वाली सौम्या तो शुरू ने उनके कोच सुरेश चियानानी ने नहीं चुना था लेकिन बाद में उन्होंने इस बल्लेबाज को मौका दिया. उन्होंने फाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ सात विकेट की जीत के दौरान विजयी रन बनाए.
तृषा रेड्डी, सलामी बल्लेबाज: तेलंगाना के भद्राचलम की रहने वाली तृषा पूर्व अंडर-16 राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी गोंगादी रेड्डी की बेटी हैं. बचपन में ही उन्होंने अपनी आंखों और हाथ के बीच तालमेल से अपने पिता को प्रभावित किया जिन्होंने उसकी क्रिकेट महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपनी चार एकड़ की पैतृक भूमि बेच थी.
ऋषिता बासु, वैकल्पिक विकेटकीपर: कई अन्य खिलाड़ियों की तरह ऋषिता ने शुरुआत गली क्रिकेटर के रूप में की. कोलकाता के हावड़ा की रहने वाली ने नवंबर में न्यूजीलैंड के खिलाफ पदार्पण का मौका मिलने के बाद इसका पूरा फायदा उठाया.
रिचा घोष, विकेटकीपर-बल्लेबाज: रिचा विकेटकीपर के साथ आक्रामक बल्लेबाज हैं. वह महेंद्र ंिसह धोनी को अपना आदर्श मानती है लेकिन यह उनके पिता मानवेंद्र घोष ने जिन्होंने उनका ‘पावर गेम’ निखारने में मदद की. उन्होंने पिछले महीने आॅस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की टी20 अंतरराष्ट्रीय श्रृंखला में 36 और 26 रन की अहम पारियां खेलकर सुर्खियां बटोरी.
टिटास साधू, तेज गेंदबाज: उनका परिवार आयु वर्ग का क्लब चलाता है. वह 10 साल की उम्र में क्लब की क्रिकेट टीम के साथ ‘स्कोरर’ के रूप में जाती थी. फाइनल की स्टार खिलाड़ियों में शामिल टिटास अपने राज्य बंगाल की दिग्गज झूलन गोस्वामी की राह पर चल रही हैं. वह तेज गति से गेंद कराती हैं, उछाल हासिल करती हैं और गेंद को दोनों ओर ंिस्वग करा सकती हैं. वह अपने पिता की तरह फर्राटा धाविका बनना चाहती थी. उन्होंने 10वीं की बोर्ड परीक्षण में 93 प्रतिशत अंक जुटाए लेकिन क्रिकेट में करियर बनाने के लिए पढ़ाई छोड़ दी.
सोनम यादव, बाएं हाथ की स्पिनर: उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद की 15 साल की इस स्पिनर के पिता मुकेश कुमार कांच की फैक्टरी में काम करते हैं. उन्होंने सबसे पहले लड़कों के साथ खेलना शुरू किया और उनकी रुचि को देखते हुए मुकेश ने अपनी बेटी को एक अकादमी के साथ जोड़ दिया. बल्लेबाज के रूप में शुरुआत करने वाली सोनम अपने कोच की सलाह पर गेंदबाजी करने लगी.
मन्नत कश्यप, बाएं हाथ की स्पिनर: हवा में तेज गति से गेंद करने वाली मन्नत का एक्शन सोनम से बेहतर है. पटियाला की रहने वाली यह खिलाड़ी लड़कों के साथ गली क्रिकेट खेलते हुए बड़ी हुई और अपनी एक रिश्तेदार के कहने पर खेल को गंभीरता से लेने लगी.
अर्चना देवी, आॅफ स्पिन आॅलराउंडर: अपने क्रिकेट सफर की शुरुआत से पहले ही कैंसर के कारण अपने पिता का गंवाने वाली अर्चना का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के रताई पूर्वा गांव के एक गरीब परिवार में हुआ. एक दिन अर्चना के मारे शॉट पर गेंद ढूंढते समय सांप के काटने के कारण उनके भाई बुद्धिराम की मौत हो गई. उनके भाई ने ही अर्चना के क्रिकेटर बनने की इच्छा जताई थी.
पार्श्वी चोपड़ा, लेग स्पिनर: बुलंदशहर की इस लड़की की स्केंिटग में रुचि थी लेकिन उन्हें क्रिकेट देखना भी पसंद था. पहले प्रयास में नाकाम रहने के बाद उन्हें एक साल बाद राज्य के ट्रायल में चुना गया. उन्होंने विश्व कप में छह मैच में 11 विकेट चटकाए और श्रीलंका के खिलाफ पांच रन देकर चार विकेट हासिल किए.
फलक नाज, तेज गेंदबाजी आॅलराउंडर: टूर्नामेंट में फलक को एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला लेकिन आॅस्ट्रेलिया के खिलाफ अभ्यास मैच में इस तेज गेंदबाज ने किफायती गेंदबाजी करते हुए तीन ओवर में सिर्फ 11 रन दिए लेकिन उन्हें विकेट नहीं मिला. उनके पिता नासिर अहमद उत्तर प्रदेश के एक स्कूल में काम करते हैं और उनकी मां गृहणी है.
हर्ले गाला, आॅलराउंडर: मुंबई में एक गुजराती परिवार में जन्मीं हर्ले ने 15 साल की उम्र में सीनियर टीम के साथ पदार्पण किया. उन्होंने घरेलू मैच में शेफाली वर्मा और दीप्ति शर्मा के विकेट चटकाकर लोगों का ध्यान खींचा था.
सोनिया मेधिया, बल्लेबाजी आॅलराउंडर: हरियाणा की सोनिया ने टूर्नामेंट में चार मैच खेले लेकिन उन्हें कोई विकेट नहीं मिला. उन्होंने पांच ओवर में 30 रन दिए.
शब्बम एमडी, तेज गेंदबाज: विशाखापत्तनम की इस 15 वर्षीय तेज गेंदबाज ने दो मैच खेले और एक विकेट चटकाया. उनके पिता नौसेना में हैं और वह भी तेज गेंदबाज थे.
यह अभी बस शुरूआत है, विश्व कप जीतने के बाद कहा शेफाली ने
अंडर 19 विश्व कप में खिताबी जीत से आहलादित भारत की चैम्पियन बल्लेबाज शेफाली वर्मा के लिये यह महज एक शुरूआत है और उनका इरादा दो सप्ताह बाद सीनियर टीम के साथ इस सफलता को दोहराने का है. उन्नीस वर्ष की शेफाली भारत की सीनियर टीम का भी हिस्सा हैं और वह दूसरी बार खिताब जीतकर दक्षिण अफ्रीका दौरे को यादगार बनाना चाहती है .
जीत के बाद उसने कहा ,‘‘ मैं जब यहां आई तो फोकस अंडर 19 विश्व कप पर था लेकिन उसे हम जीत चुके हैं . अब नजरें सीनियर विश्व कप पर हैं . मैं इस जीत को भुलाकर अब सीनियर विश्व कप पर फोकस करूंगी .’’ शेफाली उस भारतीय टीम का भी हिस्सा थी जो 2020 टी20 विश्व कप फाइनल में आस्ट्रेलिया से हार गई थी . उसने कहा कि उस हार की टीस अभी भी सालती है .
उसने कहा ,‘‘ मेलबर्न में खेला गया फाइनल मेरे लिये काफी जज्बाती था . हम उस मैच को जीत नहीं सके थे .’’ शेफाली ने कहा ,‘‘ जब मैं अंडर 19 टीम से जुड़ी तो बस यही सोचती थी कि हमें विश्व कप जीतना है .मैं लड़कियों से यही कहती थी कि हमें जीतना ही है और हम जीत गए .’’
उसने कहा ,‘‘ हम विश्व कप हारने के बाद खूब रोये थे लेकिन अब ये खुशी के आंसू हैं . हम जो जीतने आये थे, वह हमने जीता .’’ पुरस्कार वितरण के समय अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख सकी शेफाली ने कहा ,‘‘ मैने आंसू रोकने की कोशिश की लेकिन रोक नहीं सकी . मैं आगे भी अच्छा प्रदर्शन करके भारत के लिये रन बनाती रहूंगी . लेकिन इस विश्व कप से ही संतोष नहीं है . यह तो अभी शुरूआत भर है .’’
मां की मेहनत, गुरू की लगन और कुलदीप से प्रेरणा ने अर्चना के सपनों को दिये पंख
चार बरस की उम्र में अपने पिता को खो चुकी अर्चना देवी ने विषम परिस्थितियों में भी अपनी मां की मेहनत और गुरू की लगन के दम पर अपने क्रिकेट के शौक को ंिजदा रखा और उसे परवान चढाया भारतीय क्रिकेटर कुलदीप यादव के सहयोग ने. अर्चना देवी निषाद पहला अंडर 19 महिला विश्व कप जीतकर इतिहास रचने वाली भारतीय टीम की सदस्य हैं . दक्षिण अफ्रीका में इंग्लैंड के खिलाफ अंडर 19 महिला क्रिकेट विश्व कप फाइनल में अर्चना देवी ने तीन ओवर में 17 रन देकर दो विकेट हासिल किए .
उनकी इस कामयाबी के पीछे बलिदानों का लंबा सिलसिला है जिसकी शुरूआत उन्नाव जिले के एक छोटे से गांव में पुआल से बने घर से हुई . मां सावित्री देवी ने कैंसर के कारण अपने पति को खो दिया था जब अर्चना मात्र चार साल की थी . ऐसे में अपनी बेटी के सपनों को ंिजदा रखना उनके लिये कतई आसान नहीं था . उन्हें क्रिकेट के बारे में कुछ नहीं पता लेकिन अपनी बेटी की उपलब्धि पर गर्व है.
सावित्री ने कहा,” क्रिकेट के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती हूं लेकिन अपनी बिटिया को मैदान पर खेलते देख बहुत खुश हूं . कल रात उसने फोन पर बात करते हुए कहा था कि अम्मा हम जीत गयें . तब से मन बहुत खुश हैं, काश उसके बापू भी इस खुशी में शामिल होते .” उन्होंने कहा ,”कल रात से गांव में लडडू बांट रहे हैं और जब बिटिया लौटेंगी तो और लडडू बांटेंगे .” अर्चना के भाई ने बताया कि उन्हें डर था कि बार बार बिजली जाने के कारण वे शायद फाइनल मैच नहीं देख पायेंगे लेकिन जब स्थानीस पुलिस के एक अधिकारी को इस बात का पता चला तो उन्होंने उनके घर पर इन्वर्टर और बैटरी भेजी और पूरे गांव ने साथ में टीवी पर मैच देखा .
कुलदीप और अर्चना के कोच कपिल पाडेंय ने कहा ,‘‘ मैच जीतने के बाद रविवार रात अर्चना से बात हुई थी जो अपनी जीत से बहुत खुश थी और अब उसका सपना टीम इंडिया के लिए खेलना है .” राजधानी लखनऊ से करीब सौ किलोमीटर दूर उन्नाव के बांगरमऊ तहसील क्षेत्र के गंगा कटरी के गांव रतई पुरवा में भारत की जीत के बाद से खुशी का माहौल हैं . मैच समाप्त होने के बाद गांव में लोगों ने नाच गाकर जश्न भी मनाया .
रोहित ने बताया कि छठी कक्षा में अर्चना का दाखिला गंजमुरादाबाद स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में कराया गया जहां शिक्षिका पूनम गुप्ता ने उनकी खेल प्रतिभा को पहचाना . आठवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पूनम उसे लेकर कानपुर में पांडेय के पास ले गयी .
पांडेय ने बताया ,”2017 में जब अर्चना मेरे पास आयी तो मैने उससे गेंदबाजी करायी तो मुझे उसके अंदर छिपी प्रतिभा का पता चल गया . लेकिन उसके पास संसाधन नही थे और कानपुर में ठिकाना नहीं था . उसका गांव कानपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर था और वह रोज आ जा नहीं सकती थी .” पांडे ने पूनम और कुछ अन्य लोगो के सहयोग से उसे कानपुर की जेके कालोनी में किराये पर एक कमरा दिलवा कर उसके रहने और खाने का इंतजाम करवाया . इसके बाद कुलदीप ने उसे क्रिकेट किट दिलवाई .
पांडे ने कहा ,”जब कुलदीप कानपुर में होते तो वह अर्चना सहित अन्य बच्चों के साथ अभ्यास करते और उन्हें क्रिकेट की बारीकियां सिखाते . पहले अर्चना मध्यम तेज गेंदबाजी करती थी लेकिन बाद में मैने उसे आफ स्पिन डालने को कहा और फिर वह एक अच्छी आफ स्पिनर बन गयी .”