पाकिस्तान में गहराते आर्थिक-राजनीतिक संकट के बीच IMF शर्तें बढ़ा सकती हैं मुश्किलें

कोलकाता/नयी दिल्ली. घटता विदेशी मुद्रा भंडार, राष्ट्रव्यापी बिजली कटौती, सरकार द्वारा संचालित खाद्य वितरण केंद्रों पर अफरा-तफरी तथा भगदड़ और पाकिस्तानी रुपये में एक साल के अंदर आई भारी गिरावट ने पाकिस्तान को उस स्थिति में पहुंचा दिया है जहां उसके लिये अंतरराष्ट्रीय कर्ज चुकाना बेहद मुश्किल हो गया है. भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि इससे क्षेत्र के लिये गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

पाकिस्तानी रुपये में बीते एक साल में करीब 50 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है और सोमवार को एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 262 पाकिस्तानी रुपये रही. उन्होंने कहा कि आर्थिक संकट के बीच शहबाज शरीफ सरकार मंगलवार को एक सहायता पैकेज के लिये वॉंिशगटन स्थित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ अहम वार्ता शुरू करेगी. उन्होंने कहा कि इसमें (बातचीत में) मितव्ययिता की ‘‘कठिन और संभवत: राजनीतिक रूप से जोखिम भरी’’ पूर्व-शर्तें जुड़ी हो सकती हैं जो एक बड़े राजनीतिक संकट को जन्म दे सकती है.

भारत के लिए जोखिम केवल क्षेत्र में बढ़ते चरमपंथ के साथ पाकिस्तान में अस्थिरता ही नहीं होगी बल्कि अप्रत्याशित कार्रवाई भी होगी जिसमें बाहरी दुश्मन पर ध्यान केंद्रित करके घरेलू जनता का ध्यान हटाने की कोशिशें शामिल हो सकती हैं. पाकिस्तान में भारत के पूर्व दूत रहे टीसीए राघवन ने कहा, ‘‘मौजूदा आर्थिक संकट पहले से जारी जनीतिक संकट को बढ़ा रहा है (जहां इमरान खान की अगुआई वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी ने नए चुनाव कराने के लिए दो प्रांतीय विधानसभाओं को भंग कर दिया है)…आईएमएफ द्वारा धन जारी करने के लिए जिन शर्तों को लागू करने की संभावना है, वे निश्चित रूप से अल्पकालिक मुश्किलों का एक बड़ा कारण बनेंगी, जिसका राजनीतिक असर हो सकता है.’’

पाकिस्तान के सात अरब डॉलर के आईएमएफ ‘बेल-आउट’ (स्वतंत्रता के बाद से 23वां) पैकेज के वितरण को पिछले नवंबर में रोक दिया गया था क्योंकि वैश्विक ऋणदाता ने महसूस किया था कि देश ने अर्थव्यवस्था को सही आकार देने के लिए राजकोषीय और आर्थिक सुधारों की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 4.34 अरब डॉलर (एक साल पहले के 16.6 अरब डॉलर से) रह गया है, जो मुश्किल से तीन सप्ताह की आयात जरूरतों के लिए पर्याप्त है जबकि उसका दीर्घावधि कर्ज बढ़कर 274 अरब डॉलर हो गया है, जिसमें इस तिमाही में करीब आठ अरब डॉलर का पुनर्भुगतान किया जाना भी बाकी है.

देश गेहूं और तेल के आयात पर निर्भर करता है जिसके साथ मुद्रास्फीति 24 प्रतिशत तक बढ़ गई है. चीनी फर्मों समेत विदेशी निवेशक जिन्होंने आर्थिक गलियारे में कारखाने स्थापित करने में रुचि दिखाई थी वे भी एक के बाद एक हुए आतंकी हमलों को देखते हुए अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं.

दिल्ली स्थित विचारक संस्था (ंिथक टैक) ‘रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलंिपग कंट्रीज’ के पूर्व महानिदेशक व आईआईएफटी में ‘सेंटर फॉर डब्ल्यूटीओ स्ट्डीज’ के प्रमुख प्रोफेसर विश्वजीत धर कहते हैं, ‘‘उच्च ऊर्जा और खाद्य कीमतों, बढ़ती बेरोजगारी, नकारात्मक निर्यात आय, निवेशकों के बाहर जाने तथा उनकी कमी के चलते पाकिस्तान के लिए ‘बेल-आउट’ (सहायता) बहुत जरूरी है….’’ उन्होंने कहा कि इन हालात ने उसे (पाकिस्तान को) अंतरराष्ट्रीय कर्ज न चुका पाने की स्थिति में पहुंचा दिया है जिसकी आशंका हेनरी किसिंजर (पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री) ने कभी बांग्लादेश को लेकर जाहिर की थी.

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन में पूर्व स्थायी प्रतिनिधि और कराची में भारत के पूर्व महावाणिज्य दूत राजीव डोगरा ने कहा, ‘‘पाकिस्तान को उम्मीद थी कि पहले की तरह ‘ट्रिपल ए’ (आर्मी, अमेरिका व अल्लाह) फिर से किसी तरह उसकी मदद के लिए आएंगे. हालांकि समय बदल गया है … सेना ही पाकिस्तान की वित्तीय समस्याओं का एक प्रमुख कारण है क्योंकि वह बजट का बड़ा हिस्सा पाती है. अमेरिका सहायता कर करके थक गया है. हताशा में पाकिस्तान के वित्त मंत्री ने अब अल्लाह से गुहार लगाई है.’’

राघवन और धर सहित भारतीय विश्लेषकों का मानना है कि शरीफ सरकार और पाकिस्तानी सेना आईएमएफ द्वारा उल्लेखित सुधारों को लागू करने के लिए असैनिक सरकार को समय देने के लिए चुनावों में देरी करेगी और उन्हें मध्यम वर्ग के लिए अनुकूल बनाएगी जिसे इन मितव्ययिता उपायों का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

डोगरा ने कहा, ‘‘पाकिस्तान को भारत में एक बड़े बाजार का लाभ मिलेगा. भारत से इसका आयात काफी सस्ता होगा. लेकिन पिछले अनुभवों को देखें तो पाकिस्तान भारत के साथ व्यापार करने के बजाय अपनी नाक कटाने को तरजीह देगा.’’ दूसरी तरफ, भारत के भी इस तरह के प्रस्तावों से सहमत होने की संभावना नहीं है. प्रोफेसर धर ने कहा, “इस तथ्य को देखते हुए कि मौजूदा सरकार के राजनीतिक तेवर इस तरह के कदम का समर्थन नहीं करेंगे, भारत के पाकिस्तान के साथ व्यापार करने की संभावना कम है.”

विशेषज्ञों ने बताया कि नतीजतन पाकिस्तान की दोहरी आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता पड़ोस में अलग-अलग तरीकों से विस्फोटक हो सकती है. राजदूत डोगरा ने कहा, “मौजूदा स्थिति आतंकी समूहों के फलने-फूलने के लिए आदर्श है … और पाकिस्तान का इस क्षेत्र में अपने संकटमोचकों को दूसरों की ओर मोड़ने का इतिहास रहा है, विशेष रूप से भारत की ओर.”

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