महान फुटबॉलर पेले के निधन से दुनिया भर में शोक की लहर…

पेले का उत्कृष्ट खेल आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा:प्रधानमंत्री मोदी

साओ पाउलो/नयी दिल्ली/कोलकाता/नयी दिल्ली. ब्राजील के महान फुटबॉलर पेले के निधन से दुनिया भर में शोक की लहर है और लोग सोशल मीडिया के जरिये अपना दुख व्यक्त कर रहे हैं. पेले का कैंसर से लंबे समय तक जूझते रहने के कारण बृहस्पतिवार को निधन हो गया. पुर्तगाल के महान फुटबॉल खिलाड़ी क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने कहा ,‘‘ किंग पेले को अलविदा कहकर उस दुख को बयां नहीं किया जा सकता जिससे इस समय पूरा फुटबॉल जगत गुजर रहा है . लाखों के प्रेरणास्रोत , कल, आज और हमेशा . मेरे प्रति उनका अपार स्रेह था और उनकी याद हर फुटबॉलप्रेमी के मन में हमेशा रहेगी . रेस्ट इन पीस किंग पेले .’’

ब्राजील की 1970 विश्व कप विजेता टीम के सदस्य रॉबर्टो रिवेलिनो ने लिखा ,‘‘अब आप भगवान के पास हैं . किंग रेस्ट इन पीस .’’ ब्राजील के फुटबॉल स्टार नेमार : ‘‘ पेले से पहले दस महज एक नंबर था . मैने अपने जीवन में कहीं पढा था लेकिन यह खूबसूरत और अधूरी पंक्ति है . मैं कहूंगा कि पेले से पहले फुटबॉल महज एक खेल था . पेले ने सब कुछ बदल दिया . उन्होंने फुटबॉल को कला और मनोरंजन बनाया . उन्होंने गरीबों को और अश्वेतों को आवाज और ब्राजील को पहचान दी . वह नहीं रहे लेकिन उनका जादू हमेशा रहेगा . पेले अमर हैं .’’

फ्रांस के मैनेजर और पूर्व खिलाड़ी दिदियेर देसचैम्प्स : ‘‘ पेले के निधन से फुटबॉल ने अपने महानतम खिलाड़ियों में से एक को खो दिया. लेकिन वह अमर रहेंगे . उन्होंने लोगों को सपने देखना सिखाया और पीढी दर पीढी यह सिलसिला जारी रहा . बचपन में किसने पेले बनने का सपना नहीं देखा था . किंग हमेशा किंग रहेंगे .’’ चेलसी फुटबॉल क्लब : ‘‘ अलविदा किंग . इस खूबसूरत खेल के बादशाह .’’ मैनचेस्टर सिटी फुटबॉल क्लब : ‘‘ ब्राजील के महान खिलाड़ी पेले के निधन से मैनचेस्टर सिटी दुखी है . उन्होंने इस खेल के लिये बहुत कुछ किया . रेस्ट इन पीस .’’

पेले का उत्कृष्ट खेल आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा:प्रधानमंत्री मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महान फुटबॉल खिलाड़ी पेले के निधन पर शुक्रवार को शोक व्यक्त किया और कहा कि उनका उत्कृष्ट खेल आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा. एडसन अरांतेस डो नासिमेंटो यानी पेले का लंबे समय तक कैंसर से जूझने के बाद बृहस्पतिवार को निधन हो गया. वह 82 वर्ष के थे. मोदी ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘पेले के निधन से खेल की दुनिया में एक अपूरणीय शून्य पैदा हो गया है. वैश्विक फुटबॉल के सुपरस्टार, उनकी लोकप्रियता सीमाओं से परे रही. उनका उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन और उनकी सफलताएं आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी. उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना.

जब कोलकाता पर चला था ‘ब्लैक पर्ल’ पेले का जादू

ऋषिकेश मुखर्जी की क्लासिक कॉमेडी ‘गोलमाल’ में उत्पल दत्त इंटरव्यू में अमोल पालेकर से ‘ब्लैक पर्ल’ पेले के बारे में पूछते हैं तो उनका जवाब होता है कि सुना है कलकत्ता (कोलकाता) में करीब 30 . 40 हजार पागल उनके दर्शन करने आधी रात को दमदम हवाई अड्डे पहुंच गए थे .

यह एक बानगी थी फुटबॉल के जादूगर पेले को लेकर फुटबॉलप्रेमियों की दीवानगी की . बात 1977 की है जब पेले पहली बार कोलकाता आए थे और पूरा शहर उनके रंग में रंग गया था . डिएगो माराडोना के ‘ खुदा के हाथ ’ और लियोनेल मेस्सी की विश्व कप जीतने की अधूरी ख्वाहिश पूरी होने से बरसों पहले ब्राजील के इस धुरंधर ने बंगाल को इस खूबसूरत खेल का दीवाना बना रखा था .

खचाखच भरे ईडन गार्डंस पर 24 सितंबर 1977 को न्यूयॉर्क कोस्मोस के लिये मोहन बागान के खिलाफ खेलने वाले तीन बार के विश्व कप विजेता पेले क्लब के खिलाड़ियों के हुनर के कायल हो गए थे . ईस्ट बंगाल के बढते दबदबे से ंिचतित मोहन बागान ने फुटबॉल के इस ंिकग को गोल नहीं करने दिया और लगभग 2 . 1 से मैच जीत ही लिया था लेकिन विवादित पेनल्टी के कारण स्कोर 2 . 2 से बराबर हो गया .

कोच पी के बनर्जी ने गौतम सरकार को पेले को रोके रखने का जिम्मा सौंपा था और अपने ‘ड्रीम मैच’ में सरकार ने कोई कसर नहीं रख छोड़ी . मोहन बागान ने शाम को पेले का सम्मान समारोह रखा जहां उन्हें हीरे की अंगूठी दी जानी थी लेकिन ‘ब्लैक पर्ल’ की रूचि खिलाड़ियों से मिलने में ज्यादा थी . गोलकीपर शिवाजी बनर्जी सबसे पहले उनसे मिले . जब छठे खिलाड़ी के नाम की घोषणा हुई तो कई लोगों से घिरे पेले बैरीकेड के बाहर आये और उस खिलाड़ी को गले लगा लिया .

सरकार ने 45 बरस बाद भी उन यादों को ताजा रखा है . उन्होंने कहा ,‘‘ तुम 14 नंबर की जर्सी वाले हो जिसने मुझे गोल नहीं करने दिया . मैं स्तब्ध रह गया .’’ उन्होंने कहा ,‘‘ चुन्नीदा (चुन्नी गोस्वामी) भी मेरे पास खड़े थे जिन्होंने यह सुना . उन्होंने मुझसे कहा कि गौतम अब फुटबॉल खेलना छोड़ दो . अब यह तारीफ सुनने के बाद क्या हासिल करना बचा है . यह मेरे कैरियर की सबसे बड़ी उपलब्धि थी . वाकई .’’ यह मैच कोलकाता मैदान के मशहूर फुटबॉल प्रशासक धिरेन डे के प्रयासों का नतीजा था जो उस समय मोहन बागान के महासचिव थे .

सरकार ने कहा ,‘‘ मैं विश्वास ही नहीं कर पाया जब धिरेन दा ने हमसे कहा कि पेले हमारे खिलाफ खेलेंगे . हमने कहा कि झूठ मत बोलो लेकिन बाद में पता चला कि यह सही में होने जा रहा है . हमारी रातों की नींद ही उड़ गई .’ तीन हफ्ते पहले ही से तैयारियां शुरू हो गई थी . उस मैच में पहला गोल करने वाले श्याम थापा ने कहा ,‘‘ पेले के खिलाफ खेलने के लिये ही मैं ईस्ट बंगाल से मोहन बागान में आया . इस मैच ने हमारे क्लब की तकदीर बदल दी .’’ मोहन बागान ने इस मैच के चार दिन बाद आईएफए शील्ड फाइनल में ईस्ट बंगाल को हराया . इसके बाद रोवर्स कप और डूरंड कप भी जीता .

सात साल पहले पेले दुर्गापूजा के दौरान फिर बंगाल आये लेकिन इस बार उनके हाथ में छड़ी थी . बढती उम्र के बावजूद उनकी दीवानगी जस की तस थी और उनके मुरीदों में ‘ंिप्रस आफ कोलकाता’ सौरव गांगुली भी शामिल थे . गांगुली ने नेताजी इंडोर स्टेडियम पर पेले के स्वागत समारोह में कहा था ,‘‘ मैने तीन विश्व कप खेले हैं और विजेता तथा उपविजेता होने में काफी फर्क होता है . तीन विश्व कप और गोल्डन बूट जीतना बहुत बड़ी बात है .’’ पेले ने कहा था ,‘‘ मैने भारत आने का न्योता स्वीकार किया क्योंकि मुझे यहां के लोग बहुत पसंद है .’’ उन्होंने जाते हुए यह भी कहा था ,‘‘ अगर मैं किसी तरह से मदद कर सकूं तो फिर आऊंगा .’’

पेले ने दुनिया को फुटबॉल से मोहब्बत करना सिखाया

खुद को फुटबॉल का बीथोवन कहने वाले पेले के फन में ऐसी कशिश थी कि दुनिया को इस खूबसूरत खेल से प्यार हो गया . भ्रष्टाचार, सैन्य तख्तापलट और दमनकारी सरकारों को झेल रहे ब्राजील जैसे देश को फुटबॉल के मानचित्र पर एक नयी पहचान दिलाई पेले ने.
फुटबॉल खेलना अगर कला है तो उनसे बड़ा कलाकार दुनिया में शायद कोई दूसरा नहीं हुआ . तीन विश्व कप खिताब, 784 मान्य गोल और दुनिया भर के फुटबॉलप्रेमियों के लिये प्रेरणा का स्रोत बने पेले उपलब्धियों की एक महान गाथा छोड़कर विदा हुए .
यूं तो उन्होंने 1200 से अधिक गोल दागे थे लेकिन फीफा ने 784 को ही मान्यता दी है .

खेल जगत के पहले वैश्विक सुपरस्टार में से एक पेले की लोकप्रियता भौगोलिक सीमाओं में नहीं बंधी थी . एडसन अरांतेस डो नासिमेंटो यानी पेले का जन्म 1940 में हुआ . वह फुटबॉल की लोकप्रियता को चरम पर ले जाकर उसका बड़ा बाजार तैयार करने वाले पुरोधाओं में से रहे. उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि 1977 में जब वह कोलकाता आये तो मानों पूरा शहर थम गया था . वह 2015 और 2018 में भी भारत आये थे .

सत्रह बरस के पेले ने हालांकि 1958 में अपने पहले ही विश्व कप में ब्राजील की छवि बदलकर रख दी . स्वीडन में खेले गए टूर्नामेंट में उन्होंने चार मैचों में छह गोल किये जिनमें से दो फाइनल में किये थे . ब्राजील को उन्होंने मेजबान पर 5 . 2 से जीत दिलाई और कामयाबी के लंबे चलने वाले सिलसिले का सूत्रपात किया .

फीफा द्वारा महानतम खिलाड़ियों में शुमार किये गए पेले राजनेताओं के भी पसंदीदा रहे . विश्व कप 1970 से पहले उन्हें राष्ट्रपति एमिलियो गारास्ताजू मेडिसि के साथ एक मंच पर देखा गया जो ब्राजील की सबसे तानाशाह सरकार के सबसे निर्दयी सदस्यों में से एक थे . ब्राजील ने वह विश्व कप जीता जो पेले का तीसरा विश्व कप भी था . ब्राजील की पेचीदा सियासत के सरमाये में मध्यम वर्ग से निकला एक अश्वेत खिलाड़ी विश्व फुटबॉल परिदृश्य पर छा गया .

उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि 1960 के दशक में नाइजीरिया के गृहयुद्ध के दौरान 48 घंटे के लिये विरोधी गुटों के बीच युद्धविराम हो गया ताकि वे लागोस में पेले का एक मैच देख सकें . वह कोस्मोस के एशिया दौरे पर 1977 में मोहन बागान के बुलावे पर कोलकाता भी आये . उन्होंने ईडन गार्डंस पर करीब आधा घंटा फुटबॉल खेला जिसे देखने के लिये 80000 दर्शक मौजूद थे . उस मैच के बाद मोहन बागान की मानो किस्मत बदल गई और टीम जीत की राह पर लौट आई . उसके बाद वह 2018 में आखिरी बार कोलकाता आये और उनके लिये दीवानगी का आलम वही था .

पेले के 80वें जन्मदिन पर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष थॉमस बाक ने कहा था ,‘‘ आपने कभी ओलंपिक नहीं खेला लेकिन आप ओलंपिक खिलाड़ी हैं क्योंकि पूरे कैरियर में ओलंपिक के मूल्यों को आपने आत्मसात किया .’’ फुटबॉल जगत में यह बहस बरसों से चल रही है कि पेले , माराडोना और अब लियोनेल मेस्सी में से महानतम कौन है . डिएगो माराडोना ने दो साल पहले दुनिया को अलविदा कहा और मेस्सी ने दो सप्ताह पहले ही विश्व कप जीतने का अपना सपना पूरा किया . पेले जैसे खिलाड़ी मरते नहीं , अमर हो जाते हैं . उनके खेल की छाप कभी मिटती नहीं . अलविदा ंिकग .

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