पूर्व न्यायाधीशों ने नुपुर शर्मा पर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी की आलोचना की

नयी दिल्ली. पूर्व न्यायाधीशों और नौकरशाहों के एक समूह ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व प्रवक्ता नुपुर शर्मा के खिलाफ उच्चतम न्यायालय की हालिया टिप्पणियों की ंिनदा करते हुए मंगलवार को आरोप लगाया कि शीर्ष अदालत ने इस मामले में ‘‘लक्ष्मण रेखा’’ पार कर दी और ये टिप्पणियां सबसे बड़े लोकतंत्र की न्याय प्रणाली पर ऐसा दाग हैं, जिसे मिटाया नहीं जा सकता. उन्होंने न्यायालय से टिप्पणियों को वापस लेने की मांग की.

उच्च न्यायालयों के 15 पूर्व न्यायाधीशों, अखिल भारतीय सेवा के 77 पूर्व अधिकारियों और 25 अन्य लोगों के समूह ने आरोप लगाया कि ये ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ टिप्पणियां न्यायिक लोकाचार से मेल नहीं खातीं और इन्होंने देश और विदेश में लोगों को ‘‘हतप्रभ’’ कर दिया है.
समूह ने एक बयान पर हस्ताक्षर किए, जिसमें उन्होंने कहा, ‘‘न्यायपालिका के इतिहास में, ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणियां नहीं देखने को मिलती हैं और सबसे बड़े लोकतंत्र की न्याय प्रणाली पर ऐसा दाग हैं, जिसे मिटाया नहीं जा सकता. इस मामले में तत्काल सुधारात्मक कदम उठाए जाने का आ’’ान किया जाता है, क्योंकि इसके लोकतांत्रिक मूल्यों और देश की सुरक्षा पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं.’’

इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में बंबई उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश क्षितिज व्यास, केरल उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पी एन रवींद्रन, गुजरात उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस एम सोनी, राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश- न्यायमूर्ति आर एस राठौर एवं न्यायमूर्ति प्रशांत अग्रवाल और दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस एन ढींगरा शामिल हैं.
पूर्व आईएएस अधिकारी आनंद बोस, आर एस गोपालन और एस कृष्ण कुमार, राजदूत (सेवानिवृत्त) निरंजन देसाई, पूर्व पुलिस महानिदेशक एस पी वैद और बी एल वोहरा, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) वी के चतुर्वेदी और एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) एस पी ंिसह ने भी बयान पर हस्ताक्षर किए हैं.

बयान में कहा गया है, ‘‘ये टिप्पणियां न्यायिक आदेश का हिस्सा नहीं हैं और उन्हें न्यायिक औचित्य एवं निष्पक्षता के आधार पर किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है. ’’ उच्चतम न्यायालय ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से निलंबित नेता नुपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद के बारे में विवादित टिप्पणी को लेकर उन्हें एक जुलाई को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि उनकी (नुपुर की) ‘‘अनियंत्रित जुबान’’ ने ‘‘पूरे देश को आग में झोंक’’ दिया. न्यायालय ने यह भी कहा था कि ‘‘देश में जो कुछ हो रहा है उसके लिए शर्मा अकेले जिम्मेदार हैं.’’

न्यायालय ने शर्मा की विवादित टिप्पणी को लेकर विभिन्न राज्यों में दर्ज प्राथमिकियों को एक साथ जोड़ने संबंधी उनकी याचिका स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा था कि उन्होंने (शर्मा ने) पैगंबर मोहम्मद के बारे में टिप्पणी या तो सस्ता प्रचार पाने के लिए या किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत या किसी घृणित गतिविधि के तहत की.

बयान में इन टिप्पणियों की ंिनदा करते हुए कहा गया है, ‘‘हम जिम्मेदार नागरिक के तौर पर यह मानते हैं कि किसी भी देश का लोकतंत्र तब तक ही बरकरार रहेगा, जब तक कि सभी संस्थाएं संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करती रहेंगी. उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाशीधों की हालिया टिप्पणियों ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी है और हमें एक खुला बयान जारी करने के लिए मजबूर किया है.’’ बयान में कहा गया कि इन ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण और अप्रत्याशित’’ टिप्पणियों के कारण देश और विदेश में लोग हतप्रभ हैं.

इसमें कहा गया है, ‘‘यदि कानून के शासन एवं लोकतंत्र को बनाए रखना है और इसे आगे बढ़ाना है तो इन टिप्पणियों को नजरअंदाज करना बहुत गंभीर है और इन्हें न्याय की परवाह करने वाले लोगों का मन शांत करने के रुख के साथ वापस लिए जाने की आवश्यकता है.” बयान में उल्लेख किया गया है कि शर्मा ने शीर्ष अदालत के समक्ष न्याय प्रणाली तक पहुंच का अनुरोध किया था. इसमें कहा गया है कि अदालत की टिप्पणियों का न्यायिक रूप से याचिका में उठाए गए मुद्दे से कोई संबंध नहीं है और इन्होंने ‘‘न्याय प्रदान की सभी कसौटियों का अप्रत्याशित तरीके से उल्लंघन किया है.’’

इसमें कहा गया, ‘‘उन्हें (नुपुर को) न्यायपालिका तक पहुंच से वस्तुत: वंचित कर दिया गया था और इस प्रक्रिया में भारत के संविधान की प्रस्तावना, भावना और सार का उल्लंघन किया गया.’’ बयान में दावा किया गया कि इन टिप्पणियों ने ‘‘उदयपुर में दिन-दिहाड़े सिर कलम करने के नृशंस कृत्य’’ को अप्रत्यक्ष तरीके से छूट दे दी.

इसमें कहा गया, ‘‘कानून से जुड़े समुदाय का इस टिप्पणी पर आश्चर्यचकित होना तय है कि प्राथमिकी के कारण गिरफ्तारी होनी चाहिए. देश में बिना नोटिस दिए अन्य एजेंसियों पर इस प्रकार की टिप्पणियां वास्तव में ंिचताजनक और खतरनाक हैं.’’ बयान पर हस्ताक्षर करने वालों ने शीर्ष अदालत के पहले के आदेशों का हवाला देते हुए शर्मा की सभी प्राथमिकियों को एक साथ जोड़ने की याचिका का भी बचाव किया.

इसमें कहा गया, ‘‘यह समझ से परे है कि नुपुर शर्मा के मामले के साथ अलग व्यवहार क्यों किया जा रहा है. उच्चतम न्यायालय का यह रुख प्रशंसनीय नहीं है और यह इस देश की शीर्ष अदालत की शुचिता एवं गरिमा को प्रभावित करता है.’’ बयान में कहा गया, ‘‘जो मामले अदालत के समक्ष लंबित नहीं है, उन पर इस प्रकार की न्यायिक टिप्पणियां भारतीय संविधान के सार और भावना को नष्ट करती हैं.

याचिकाकर्ता को इस तरह की ंिनदात्मक टिप्पणियों से मजबूर करना, उसे बिना मुकदमे के दोषी घोषित करना और याचिका में उठाए गए मुद्दे को लेकर उसे न्याय तक पहुंच से वंचित करना कभी लोकतांत्रिक समाज का हिस्सा नहीं हो सकता.’’ टेलीविजन पर प्रसारित एक बहस के दौरान पैगंबर के बारे में की गई शर्मा की टिप्पणी के विरोध में देशभर में प्रदर्शन हुए थे और कई खाड़ी देशों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. भाजपा ने बाद में शर्मा को पार्टी से निलंबित कर दिया था.

न्यायालाय ने नुपुर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने वाली दिल्ली पुलिस की ंिखचाई करते हुए कहा था, ‘‘अभी तक की जांच में क्या हुआ है? दिल्ली पुलिस ने अब तक क्या किया है? हमारा मुंह न खुलवाएं? उन्होंने आपके लिए लाल कालीन बिछाया होगा.’’ इसके बाद, प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण के समक्ष एक जुलाई को दायर एक पत्र याचिका में नुपुर शर्मा के खिलाफ न्यायालय की पीठ द्वारा की गई प्रतिकूल टिप्पणी को वापस लेने का आग्रह किया गया था.

टिप्पणी वापस लेने संबंधी पत्र याचिका दिल्ली निवासी अजय गौतम द्वारा दायर की गई, जो स्वयं को सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं. पत्र याचिका में कहा गया कि इसे जनहित याचिका के तौर पर देखा जाए और सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणियों को ‘‘अवांछित’’ घोषित किया जाए.

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