झूठे साक्ष्य देने पर याचिकाकर्ता को दोषी करार दिलाने के लिए केंद्र ने न्यायालय का किया रुख

नयी दिल्ली. केंद्र ने उच्चतम न्यायालय का रुख कर 2009 में छत्तीसगढ़ के आदिवासी ग्रामीणों की हत्या की घटनाओं का विमर्श बदलने के लिए झूठा एवं मनगढ़ंत साक्ष्य देने को लेकर एक पीआईएल याचिकाकर्ता को दोषी करार देने का अनुरोध किया है. याचिका, 2009 में राज्य के दंतेवाड़ा जिले में चलाये गये नक्सल रोधी अभियान के तहत करीब दर्जन भर ग्रामीणों की कथित तौर पर हत्या कर दिये जाने के सिलसिले में दायर की गई थी.

घटना के बाद, मानवाधिकार सक्रियतावादी हिमांशु कुमार और अन्य ने एक याचिका दायर कर आरोप लगाया कि मृतकों के परिजनों का छत्तीसगढ़ पुलिस ने कथित तौर पर अपहरण कर लिया. उक्त परिजनों ने शीर्ष न्यायालय में शुरूआती याचिका दायर की थी. कुमार ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि हत्याकांड के 28 वर्षीय एक अहम गवाह सोढी संबो को आखिरी बार दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में देखा गया था. संबो का गोली लगने से हुए घाव का इलाज चल रहा था.

शीर्ष न्यायालय ने 2010 में दिल्ली जिला न्यायाधीश को याचिकाकर्ताओं के बयान दर्ज करने का निर्देश दिया था. बार-बार अनुरोध किये जाने पर केंद्र को मार्च 2022 में बयानों की एक प्रति उपलब्ध कराई गई. न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ ने पीआईएल याचिकाकार्ता को विषय में जवाब दाखिल करने को कहा और विषय की सुनवाई 28 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध कर दी.

सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि वामपंथी उग्रवादियों को, सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए बेकसूर आदिवासियों के रूप में चित्रित करने के दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य के साथ झूठे साक्ष्य पेश किये गये. केंद्र की याचिका में आरोप लगाया गया है कि पीआईएल याचिकाकर्ता का इस मामले में एकमात्र उद्देश्य वामपंथी उग्रवाद को शांत करने की सुरक्षा बलों की कोशिशों को पटरी से उतारना था.

याचिका के जरिये, नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों को कार्रवाई करने से रोकने के लिए अदालत में याचिकाएं दायर करने को लेकर उकसाने एवं साजिश रचने वाले व्यक्तियों व संगठनों की सीबीआई/एनआईए या किसी अन्य केंद्रीय एजेंसी से जांच कराने का भी अनुरोध किया गया है.

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