प्रधानमंत्री का सिविल सेवा अधिकारियों से निर्णयों में ‘राष्ट्र प्रथम’ के मंत्र को अपनाने का आह्वान

नयी दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिविल सेवा अधिकारियों से अपने निर्णयों में ‘‘राष्ट्र प्रथम’’ के मंत्र को अपनाने का आह्वान करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि देश की एकता व अखंडता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता. सिविल सेवा दिवस के अवसर पर यहां स्थित विज्ञान भवन में लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए पुरस्कार प्रदान करने के बाद सिविल सेवा अधिकारियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भले ही उनका कोई निर्णय स्थानीय स्तर का हो, लेकिन उन्हें यह जरूर देखना चाहिए कि वह निर्णय देश की एकता और अखंडता में कहीं रुकावट तो पैदा नहीं करेगा.

प्रधानमंत्री ने कहा कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सिविल सेवा अधिकारियों के सामने तीन लक्ष्य साफ-साफ होने चाहिए और इनसे कोई समझौता नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘पहला लक्ष्य है कि देश के सामान्य से सामान्य जन के जीवन में बदलाव लाना. ना सिर्फ उसके जीवन में बदलाव बल्कि सुगमता भी आए और उन्हें इसका अहसास भी हो. सरकार से मिलने वाले लाभों के लिए उन्हें जद्दोजहद ना करनी पड़े. हमें उनके सपनों को संकल्प में बदलना है. इसके लिए सकारात्मक वातावरण बनाना व्यवस्था की जिम्मेदारी है.’’

प्रधानमंत्री ने दूसरा लक्ष्य वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप नवीनता और आधुनिकता को अपनाना और तीसरा लक्ष्य एकता व अखंडता से समझौता ना करना बताया. उन्होंने कहा, ‘‘आज हम कुछ भी करें, उसको वैश्विक सन्दर्भ में करना समय की मांग है…और तीसरा लक्ष्य… व्यवस्था में हम कहीं पर भी हों, लेकिन जिस व्यवस्था से हम निकले हैं, उसमें हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है देश की एकता और अखंडता. यह लक्ष्य कभी भी ओझल नहीं होना चाहिए. इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता.’’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘कोई भी निर्णय…वह चाहे स्थानीय स्तर का ही क्यों ना हो और कितना भी लोकलुभावन हो या आकर्षक हो, उसे उस तराजू पर जरूर तौलिए कि कहीं देश की एकता और अखंडता में वह बाधक या रूकावट तो नहीं पैदा करेगा.’’ उन्होंने अधिकारियों से कहा कि उनके काम की कसौटी में ‘‘राष्ट्र प्रथम’’ होना चाहिए. उन्होंने कहा कि किसी भी निर्णय का आकलन इस आधार पर होना चाहिए कि उसमें देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने की कितनी क्षमता है.

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर अधिकारियों से कहा कि पिछली शताब्दी की सोच और नीति नियमों से अगली शताब्दी की मजबूती का संकल्प नहीं लिया जा सकता लिहाजा तेज गति से बदलते विश्व में उन्हें भी समय के साथ चलना पड़ेगा और व्यवस्थाओं में बदलाव करना होगा. आजादी की 100वीं वर्षगांठ में बचे 25 सालों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह कालखंड सामान्य नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘‘इस 25 साल को एक इकाई के रूप में देखना होगा और हमारे पास इसे लेकर एक दूरदृष्टि होनी चाहिए. 100 वर्षों का भारत एक ऐतिहासिक क्षण होगा.’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के सभी जिलों को इसी भावना के साथ आगे बढ़ना होगा.

उन्होंने कहा, ‘‘भारत की संस्कृति की ये विशेषता है कि हमारा देश राज्य व्यवस्थाओं से नहीं बना है. हमारा देश राजसिंहासनों की बपौती नहीं रहा है. इस देश में जन सामान्य के सामर्थ्य को लेकर चलने की सदियों से एक परंपरा रही है.’’ देश में स्टार्ट-अप और कृषि के क्षेत्र में हो रहे नवोन्मेषों का उल्लेख करते हुए अधिकारियों से इनमें सकारात्मक भूमिका निभाने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा, ‘‘प्रशासन में सुधार हमारा स्वाभाविक रुख होना चाहिए और यह देश काल व समय के अनुकूल होना चाहिए. शासन में सुधार एक नित्य और सहज प्रक्रिया एवं प्रयोगशील व्यवस्था होनी चाहिए.’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले आठ सालों में देश में अनेक बड़े काम हुए और इनमें से अनेक अभियान ऐसे हैं जिनके मूल में व्यवहारिक परिवर्तन है.

केन्­द्र और राज्­य सरकारों के संगठनों और जिलों द्वारा जन हित के असाधारण और अभिनव कार्यों को सम्­मानित करने के लिए ये पुरस्कार दिए जाते हैं. इस वर्ष प्राथमिकता के आधार पर पांच कार्यक्रमों के लिए 10 पुरस्­कार दिए गए. केन्­द्र तथा राज्­य सरकार के संगठनों और जिलों को नवाचार के लिए छह पुरस्­कार प्रदान किये गए. केंद्रीय मंत्री जितेन्­द्र सिंह ने बुधवार को 15वें सिविल सेवा दिवस समारोह का उद्घाटन किया था.

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