मानवता के समक्ष खड़े प्रश्नों का उत्तर भारत के अनुभवों, सांस्कृति सार्म्थय से ही निकल सकता है: मोदी

नयी दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के विभिन्न देशों में उपजे हालात की ओर इशारा करते हुए मंगलवार को कहा कि आज विश्व के सामने अनेक साझे संकट और चुनौतियां हैं और मानवता के समक्ष खड़े प्रश्नों का समाधान भारत के अनुभवों और उसके सांस्कृतिक सामर्थ्य से ही निकल सकता है.

यहां 7, लोक कल्याण मार्ग स्थित अपने सरकारी आवास पर शिवगिरि तीर्थ यात्रा की 90वीं वर्षगांठ और ब्रह्म विद्यालय की स्वर्ण जयंती के वर्ष भर चलने वाले संयुक्त समारोह के उद्घाटन के बाद अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि 25 साल बाद देश जब आजादी की 100वीं वर्षगांठ मनाएगा तो भारत की उपलब्धियां वैश्विक होनी चाहिए और इसके लिए उसकी दूरदृष्टि भी वैश्विक होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि दुनिया के कई देश, कई सभ्यताएं जब अपने धर्म से भटकीं, तो वहां आध्यात्म की जगह भौतिकतावाद ने ले ली, लेकिन भारत के ऋषियों, संतों और गुरुओं ने हमेशा विचार और व्यवहार का शोधन किया और उनका संवर्धन किया.

उन्होंने कहा, ‘‘आज हम जो भारत देख रहे हैं, आजादी के 75 सालों की जिस यात्रा को हमने देखा है, यह उन्हीं महापुरूषों के ंिचतन और मंथन का परिणाम है. आजादी के हमारे मनीषियों ने जो मार्ग दिखाया था आज भारत उन लक्ष्यों के करीब पहुंच रहा है.’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि आज से 25 साल बाद देश अपनी आजादी की 100वीं वर्षगांठ मनाएगा और इसके मद्देनजर उन्होंने देशवासियों से नए लक्ष्य गढ़ने और नए संकल्प लेने का आ’’ान किया.

उन्होंने कहा, ‘‘इन सौ सालों की यात्रा में हमारी उपलब्धियां वैश्विक होनी चाहिए और उसके लिए हमारा विजन भी वैश्विक होना चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि आज विश्व के सामने अनेक साझी चुनौतियां हैं और साझे संकट भी हैं तथा कोरोना महामारी के समय दुनिया ने इसकी एक झलक भी देखी है. उन्होंने कहा, ‘‘मानवता के सामने खड़े भविष्य के प्रश्नों का उत्तर भारत के अनुभवों और भारत के सांस्कृतिक सार्म्थय से ही निकल सकता है.’’ उन्होंने संतों और आध्यात्मिक गुरुओं से महान परंपरा को आगे बढ़ाने का आग्रह करते हुए कहा कि वह इसमें ‘‘बहुत बड़ी भूमिका’’ निभा सकते हैं.

आजादी का अमृत महोत्सव की पृष्ठभूमि में मोदी ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की व्याख्या करते हुए कहा कि उनके मुताबिक आध्यात्म इसका मुख्य आधार था. उन्होंने कहा, ‘‘हमारा स्वतन्त्रता संग्राम केवल विरोध प्रदर्शन और राजनैतिक रणनीतियों तक ही सीमित नहीं था. ये गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने की लड़ाई तो थी ही लेकिन साथ ही एक आजाद देश के रूप में हम कैसे होंगे, इसका विचार भी था.’’ उन्होंने कहा, ‘‘क्योंकि, हम किस चीज के खिलाफ हैं केवल यही महत्वपूर्ण नहीं होता. हम किस सोच के, किस विचार के लिए एक साथ हैं यह भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होता है.’’ प्रधानमंत्री ने कहा क­ िश्री नारायण गुरु भारत के आध्यात्मिक गुरू हैं, जिन्होंने देश की सांस्कृतिक विरासत और नैतिक मूल्यों में अमूल्य योगदान दिया.

उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी की एक ही जाति है ओर वह है भारतीयता. हम सभी का एक ही धर्म है और वह है सेवा और अपने कर्तव्यों का पालन. हम सभी के एक ही ईश्वर हैं ओर वह हैं भारत मां की 130 करोड़ से अधिक संतान.’’ उन्होंने कहा कि नारायण गुरु का एक जाति, एक धर्म एक ईश्वर का आ’’ान राष्ट्रभक्ति की भावना को एक अध्यात्मिक ऊंचाई देता है. इस अवसर पर केन्­द्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन और राजीव चंद्रशेखर, श्री नारायण धर्म संघम ट्रस्ट के स्वामी सच्चिदानंद और स्वामी ऋतंभानंद भी मौजूद थे ज्ञात हो कि शिवगिरि तीर्थयात्रा और ब्रह्म विद्यालय दोनों महान समाज सुधारक श्री नारायण गुरु के संरक्षण और मार्गदर्शन के साथ शुरू हुए थे.

शिवगिरी तीर्थ यात्रा हर साल तीन दिनों के लिए 30 दिसंबर से 1 जनवरी तक तिरुवनंतपुरम के शिवगिरी में आयोजित की जाती है. यह तीर्थयात्रा शिक्षा, स्वच्छता, धर्मपरायणता, हस्तशिल्प, व्यापार और वाणिज्य, कृषि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा संगठित प्रयास जैसे आठ विषयों पर केंद्रित है. वर्ष 1933 में कुछ भक्तों द्वारा यह तीर्थयात्रा शुरू की गई थी लेकिन दक्षिण भारत में अब यह प्रमुख आयोजनों में से एक बन गई है. हर साल दुनिया भर से लाखों भक्त जाति, पंथ, धर्म और भाषा से ऊपर उठकर तीर्थयात्रा में भाग लेने के लिए शिवगिरी आते हैं.

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